नौ जजों की संविधान पीठ ने निजता को मौलिक अधिकार माना
———केंद्र को झटका, कानून मंत्री ने विपक्ष पर किया पलटवार
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कानून रिव्यू/नई दिल्ली
निजता के अधिकार के सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बड़ा फैसला सुनाया है। नौ जजों वाली सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार बताया है। पीठ में मुख्य न्यायाधीश जे.एस. खेहर, जस्टिस जे. चेलमेश्वर, जस्टिस एस.ए. बोबडे, जस्टिस आर.के. अग्रवाल, जस्टिस आर.एफ. नरीमन, जस्टिस ए.एम. सप्रे, जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एस अब्दुल नजीर शामिल हैं।
संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत पीठ ने कहा कि निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए जीने के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हिस्सा है। संविधान पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के उन दो पुराने फैसलों को खारिज कर दिया जिनमें निजता को मौलिक अधिकार नहीं माना गया था।
1954 में एमपी शर्मा मामले में छह जजों की पीठ ने और 1962 में खड़ग सिंह केस में आठ जजों की पीठ ने फैसला सुनाया था। वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने फैसला आने के बाद मीडिया से कहा, सरकार ने आधार कानून बनाया है जिसमें समाज कल्याण की योजनाओं के लिए आधार की जानकारी देना जरूरी है. इस पर भी विचार किया जाएगा. अगर सरकार रेल टिकट और फ़्लाइट टिकट और दूसरी चीजों में भी आधार को जरूरी बनाती है तो इसके खि़लाफ भी आवाज उठाई जाएगी। इसके पहले, जुलाई में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि निजता का अधिकार संपूर्ण अधिकार नहीं है और इस पर राजसत्ता कुछ हद तक तर्कपूर्ण रोक लगा सकती है। मामले की सुनवाई कर रही संविधान बेंच ने यह सवाल किया था कि आखिर निजता के अधिकार की रूपरेखा क्या हो ?
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19 जुलाई – उच्चतम न्यायालय ने कहा कि निजता का अधिकार पूर्ण नहीं हो सकता, नियमन किया जा सकता है.
19 जुलाई – केन्द्र ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है.
26 जुलाई – कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, पंजाब और पुडुचेरी, गैर-भाजपा शासित चार राज्य निजता के अधिकार के पक्ष में न्यायालय पहुंचे.
—— राइट टू प्राइवेसी मामले में एएसजी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा- ऑनलाइन के दौर में कुछ भी प्राइवेट नहीं रहा
26 जुलाई – केन्द्र ने न्यायालय से कहा कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार हो सकता है, लेकिन कुछ अपवादों व् शर्तों के साथ.
27 जुलाई – महाराष्ट्र सरकार ने न्यायालय से कहा कि निजता का अधिकार कोई ‘इकलौती’ चीज नहीं है, यह व्यापक विचार है.
—— संविधान पीठ का सरकार से सवाल- क्या आधार डेटा को प्रोटेक्ट करने के लिए कोई मजबूत मैकेनिज्म है?
1 अगस्त – न्यायालय ने कहा कि सार्वजनिक मंच पर व्यक्ति की निजी सूचनाओं की सुरक्षा के लिए ‘विस्तृत’ दिशा-निर्देश होने चाहिए.
2 अगस्त – न्यायालय ने कहा कि प्रौद्योगिकी के दौर में निजता की सुरक्षा का सिद्धांत एक ‘हारी हुई लड़ाई’ है, फैसला सुरक्षित रखा।
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सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में इस सवाल पर काफी हद रोशनी डाली है कि कानून की नजर में प्राइवेसी दरअसल क्या चीज है और इसमें दखलंदाजी करने की सरकार को किस हद तक आजादी है.ः-
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निजता के अधिकार से उपजे सवालों के जवाब
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फैसले की सात खास बातें
जीवन और निजी स्वतंत्रता का अधिकार एक दूसरे से अलग नहीं किए जा सकते हैं. ये वो अधिकार हैं जो मनुष्य के गरिमापूर्ण अस्तित्व का अभिन्न हिस्सा हैं. ये अधिकार संविधान ने गढ़े नहीं हैं बल्कि संविधान ने इन्हें मान्यता दी है.
प्राइवेसी के अधिकार को संविधान संरक्षण देता है और यह जीवन और निजी स्वतंत्रता की गारंटी से पैदा होता है. प्राइवेसी का अधिकार, स्वतंत्रता और सम्मान की गारंटी देने वाले संविधान के अन्य मौलिक अधिकारों से भी मिलता है. जीवन और स्वतंत्रता संविधान ने नहीं दी है बल्कि केवल इन अधिकारों में राज्य के दखल देने की सीमा तय की है.
प्राइवेसी के संवैधानिक अधिकार को कानूनी मान्यता देना संविधान में कोई बदलाव करना नहीं है. और न ही कोर्ट कोई ऐसा संवैधानिक काम कर रहा है जो संसद की जिम्मेदारी थी.
प्राइवेसी की बुनियाद में निजी रुझानों या झुकाव को बचाना, पारिवारिक जीवन की पवित्रता, शादी, बच्चे पैदा करना, घर और यौन रुझान जैसी चीजें शामिल हैं. एकांत में अकेले रहने का अधिकार भी प्राइवेसी है. प्राइवेसी किसी व्यक्ति की निजी स्वायत्ता की सुरक्षा करती है और जिंदगी के हर अहम पहलू को अपने तरीके से तय करने की आजादी देती है. अगर कोई व्यक्ति सार्वजनिक जगह पर हो तो ये इसका मतलब प्राइवेसी का अधिकार खत्म हो जाना या छोड़ देना नहीं है.
निजता के अधिकार को मौलिक बताने वाले 9 जजों की राय
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संविधान अनुच्छेद 21 के तहत जिन मौलिक अधिकारों की गारंटी देता है, प्राइवेसी कोई अपने आप में पूर्ण अधिकार नहीं है. प्राइवेसी की सरहद लांघने वाले किसी भी क़ानून को वाजिब, सही और तर्कसंगत होना होगा.
प्राइवेसी के नकारात्मक और सकारात्मक दोनों पहलू हैं. नकारात्मक पहलू राज्य को नागरिकों के जीवन और निजी स्वतंत्रता के अधिकार का हनन करने से रोकता है. और सकारात्मक पहलू राज्य पर इसके संरक्षण की जिम्मेदारी देता है.
सूचना की निजता प्राइवेसी के अधिकार का ही एक चेहरा है. प्राइवेसी को न केवल सरकार से ख़तरा है बल्कि गैरसरकारी तत्वों से भी खतरा है. हम सरकार से ये सिफारिश करते हैं कि डेटा प्रोटेक्शन के लिए कड़ी व्यवस्था की जाए।
—–सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना है और इस फैसले की व्याख्या केंद्र सरकार के लिए झटके के तौर पर की जा रही है। हालांकि केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने प्रेस कॉन्फ्रेस करके इस फैसले का स्वागत किया और विपक्ष पर पलटवार किया है।
उन्होंने ट्विटर पर भी लिखा कि सरकार चाहती थी कि निजता के हक को मौलिक अधिकार माना जाए। उन्होंने कांग्रेस पर पलटवार करते हुए कहा कि आपातकाल के समय निजी स्वतंत्रता की रक्षा में कांग्रेस का रिकॉर्ड क्या रहा है?
कानून मंत्री ने कहा कि फैसला पढ़े बिना सुबह से हमें सिविल लिबर्टी की दुहाई दी जा रही है जबकि सुप्रीम कोर्ट ने उसी बात को पुष्ट किया है जो संसद में आधार बिल लाते समय सरकार ने कही थी। निजता मौलिक अधिकार होनी चाहिए, लेकिन जायज पाबंदियों के साथ। उन्होंने कहा कि आधार बिल पेश करते समय ही अरुण जेटली ने राज्यसभा में कहा था कि मैं स्वीकार करता हूं कि निजता का अधिकार संभवत मौलिक अधिकार है, लेकिन कुछ मामलों में इसमें जायज पाबंदियां होंगी।
उनके इस बयान को माकपा नेता सीताराम येचुरी ने सरकार का यू-टर्न कहा है। उन्होंने ट्विटर पर लिखा, निजता के अधिकार पर सरकार के यू-टर्न की कोशिश वाली सरकारी मूर्खता मोदी और शाह की चुप्पी से और बढ़ गई है। ट्विटर पर इससे पहले येचुरी ने कहा कि हम आधार को अनिवार्य किए जाने और विदेश तकनीकी कॉरपोरेट्स की ओर से डेटा के गलत इस्तेमाल का विरोध करते रहे हैं. यह फैसला हमारे अधिकार को सुरक्षित रखने की राह बनाएगा। उनसे पहले विपक्षी दलों के नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए केंद्र सरकार के रुख के लिए उसकी आलोचना की।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा कि कांग्रेस और विपक्ष ने एक साथ निजता के अधिकार में कटौती की भाजपा सरकार की कोशिशों के खिलाफ आवाज उठाई थी।
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने इसे फासीवादी ताकतों की हार और प्रत्येक भारतीय की जीत बताया था. उन्होंने लिखा था, सुप्रीम कोर्ट का फैसला फासीवादी ताकतों के लिए बड़ा झटका है. निगरानी के जरिए दमन वाली भाजपाई विचारधारा को खारिज किया गया है।
यूपीए के समय वित्त मंत्री रहे कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने ट्विटर पर लिखा, निजता एक मौलिक अधिकार है. 1947 में जो आजादी हासिल की गई थी वो अब समृद्ध और बड़ी हुई है।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने भी इस फैसले का स्वागत करते हुए ट्वीट किया. है। नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने ट्विटर पर लिखा, मेरे पास निजता का अधिकार है और यह एक मौलिक अधिकार है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस पर ट्वीट किया, शुक्रिया सुप्रीम कोर्ट इस बहुत महत्वपूर्ण फैसले के लिए, सही हुआ है।
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने ट्वीट किया है, निजता के मौलिक अधिकार की सुरक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट का धन्यवाद।
ओडिशा के मुख्यमंत्री और बीजू जनता दल के अध्यक्ष नवीन पटनायक ने भी फैसले का स्वागत करते हुए इसे निजी आजादी और नागरिक स्वतंत्रता की दिशा में बड़ा कदम बताया है।