कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति उपराज्यपाल के माध्यम से दिल्ली में प्रशासनिक कार्य करते हैं। दिल्ली सरकार को भी संविधान के दायरे में काम करना होगा क्योंकि भूमि, पुलिस और पब्लिक आर्डर पर उसका नियंत्रण नहीं है। ऐसा लगता है दिल्ली सरकार कानून के दायरे में रहकर काम नहीं करना चाह रही। अगर दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच कोई मतभेद होगा तो मामले को राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा
दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार को सुप्रीम कोर्ट से जोरदार झटका
- कानून रिव्यू/नई दिल्ली
————————-दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार को सुप्रीम कोर्ट से जोरदार झटका लग गया है। सुप्रीम कोर्ट ने उप राज्यपाल यानी एलजी को ही दिल्ली का बॉस बताया है। दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल के मामले में दिल्ली सरकार की अपील पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों के संविधान पीठ ने दिल्ली सरकार से अपने प्रारंम्भिक विचार बताए। कोर्ट ने कहा कि प्रावधान के मुताबिक उपराज्यपाल को संविधान ने प्रमुखता दी है दिल्ली सरकार के लिए उपराज्यपाल की सहमति जरूरी है बतौर केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली सरकार के अधिकारों की संविधान में व्याख्या की गई है और उसकी सीमाएं तय हैं उपराज्यपाल के अधिकार भी चिन्हित किए गए हैं। कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति उपराज्यपाल के माध्यम से दिल्ली में प्रशासनिक कार्य करते हैं। दिल्ली सरकार को भी संविधान के दायरे में काम करना होगा क्योंकि भूमि, पुलिस और पब्लिक आर्डर पर उसका नियंत्रण नहीं है। ऐसा लगता है दिल्ली सरकार कानून के दायरे में रहकर काम नहीं करना चाह रही। अगर दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच कोई मतभेद होगा तो मामले को राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा। कोर्ट ने कहा कि जब तक कोर्ट के सामने विशेष तौर पर ये नहीं बताया जाएगा कि उपराज्यपाल कहां अपने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर काम कर रहे हैं तब तक कोर्ट के लिए मुद्दों का परीक्षण करना संभव नहीं। दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि संवैधानिक प्रावधानों को सौहार्दपूर्ण तरीके से बनाया जाना चाहिए, चुनी हुई सरकार की भी गरिमा बनी रहनी चाहिए क्या उपराज्यपाल जो चाहे वो कर सकते हैं क्या वो बिना मंत्री के अफसरों से मीटिंग कर सकते हैं? एक के बाद एक कल्याणकारी योजनाओं की फाइलें उपराज्यपाल के पास भेजी गई है लेकिन वो एक साल से ज्यादा से फाइलों को क्लियर नहीं कर रहे हैं। दिल्ली सरकार ने कहा कि मंत्रियों को काम कराने के लिए अफसरों के पैर पडना पड़ता है सारे प्रस्ताव चीफ सेकेट्री के पास जाते हैं और वो कहते हैं कि उपराज्यपाल से कोई निर्देश नहीं मिले हैं। उपराज्यपाल इस तरह कार्यपालिका के आदेश की फाइलों पर बैठे नहीं रह सकते। उन्हें वाजिब वक्त में कारण सहित अपने अधिकार का इस्तेमाल करना चाहिए। दिल्ली सरकार ने कहा कि केंद्र सरकार दिल्ली सरकार के रोजाना कामकाज में दखल दे रही है। वहीं पीठ में शामिल जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने कहा कि उपराज्यपाल को फाइलों पर कारण सहित जवाब देना चाहिए और ये वाजिब वक्त में होना चाहिए। दिल्ली सरकार की ओर से गोपाल सुब्रमण्यम बहस कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम इस बात से सहमत हैं दिल्ली राज्य नहीं बल्कि केंद्र शासित प्रदेश है 1991 में एक्ट के जरिए इसे स्पेशल स्टेटस दिया गया। किंतु दिल्ली की अपनी चुनी हुई सरकार होगी। वहीं उपराज्यपाल को कोई भी फैसला लेने से पहले दिल्ली की सरकार की सहमति लेनी होगी। उन्होंने कहा कि पहले संसद दिल्ली के लिए कानून बनाती थी लेकिन इसके लागू होने के बाद भी अगर केंद्र के पास ये अधिकार रहेगा तो इसका मतलब है कि पहले के कानून की छाया अभी भी बरकरार है।