कानून रिव्यू/नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के दोषी की पत्नी को ससुराल जाने की इजाजत दे दी है। सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास उच्च न्यायालय के उस फैसले को रद्द कर दिया जिसमें हत्या के एक दोषी व्यक्ति की पत्नी के अपने ससुराल वालों के साथ रहने के अनुरोध को ठुकरा दिया गया था। अंसार निशा के भाई ने हत्या के दोषी ताजुद्दीन पर उसकी ;ताजुद्दीन की पत्नी एवं याचिकाकर्ता की बहन के अवैध हिरासत का आरोप लगाते हुए उच्च न्यायालय में हैबियस कॉर्पस याचिका दाखिल की थी। ताजुद्दीन वर्तमान में सेलम की केंद्रीय कारागार में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है। उच्च न्यायालय में पेश होने के बाद महिला ने पीठ को यह बताया कि वह अपनी मां के साथ जाने को तैयार नहीं है और वह अपनी ससुराल यानी ताजुद्दीन के घर रहना पसंद करेगी। पीठ ने महिला की सुरक्षा और भलाई को ध्यान में रखते हुए उसे मद्रास क्रिश्चियन काउंसिल ऑफ सोशल सर्विस के घर में रखे जाने का निर्देश दिया था। अदालत ने आगे निर्देश दिया कि इस अवधि के दौरान किसी को भी उससे मिलने की अनुमति नहीं दी जाएगी। महिला ने ससुराल में रहने की इच्छा दोहराई थी 29 अप्रैल को हालांकि महिला ने फिर से ससुराल वालों के साथ रहने का अपना इरादा दोहराया लेकिन उच्च न्यायालय ने उसे मद्रास क्रिश्चियन काउंसिल ऑफ सोशल सर्विस में बने रहने का आदेश दिया। इन आदेशों के खिलाफ अंसार निशा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इस तथ्य पर ध्यान देते हुए कि महिला बालिग है और उसने अपने पति के परिवार के साथ रहने की इच्छा व्यक्त की है। सीजेआई रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा कि हम यह नहीं समझ पा रहे हैं कि उच्च न्यायालय ने अपीलकर्ता को मद्रास क्रिश्चियन काउंसिल ऑफ सोशल सर्विस में घर में रखे जाने का निर्देश देते हुए अंतरिम आदेश कैसे पारित किया है? वह पति के रिश्तेदारों के साथ अपने पति के घर में रहने का फैसला करने का अधिकार रखती है। अदालत ने माना कि वह अपने ससुराल में रहना चाहती है और वह अपने माता.पिता के साथ ना रहने के अपने इरादे के बारे में स्पष्ट है। अगर ऐसा है तो हमें उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश को पारित करने का कोई औचित्य नहीं लगता। पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया और महिला को मद्रास क्रिश्चियन काउंसिल ऑफ सोशल सर्विस के घर से रिहा करने का निर्देश दिया।