कुछ परिस्थितियों में तकनीकी रूप से ड्यूटी पर न होते हुए भी किसी कर्मचारी के साथ घटित दुर्घटना के बदले मुआवज़ा निर्धारण के लिए उसे ड्यूटी पर ही मान लिया जाता है। जब कोई व्यक्ति स्थानान्तरण की प्रक्रिया में एक स्थान से दूसरे स्थान पर ड्यूटी के लिए जाता है तो मार्ग में घटित दुर्घटना को भी ड्यूटी के दौरान घटित दुर्घटना माना जायेगा। इसी प्रकार जब कोई व्यक्ति अन्य सहयोगियों के साथ या अकेला फौज के द्वारा आयोजित किसी मनोरंजन कार्य में भाग ले रहा होता है।
सेवा नियमों में यह एक सामान्य प्रावधान होता है कि यदि किसी व्यक्ति को सेवा कार्यों के दौरान किसी दुर्घटना के कारण कोई शारीरिक या मानसिक रूप से स्थाई क्षति होती है तो उसका मुआवज़ा उसके नियोक्ता द्वारा दिया जाये। ‘सेवा कार्यों के दौरान घटी दुर्घटना’ का अर्थ है कि ऐसी दुर्घटना जो व्यक्ति के सेवाकाल के दौरान सेवा स्थल पर घटित हुई हो। इसके अतिरिक्त कभी-कभी कुछ ऐसी घटनाएँ भी इस प्रावधान में शामिल मानी जाती हैं जब व्यक्ति बेशक सेवा स्थल पर न हो परन्तु वह कोई ऐसा कार्य कर रहा हो जो उसके सेवा कार्यों से सम्बन्धित हो। जैसे यदि कोई व्यक्ति अपनी ड्यूटी पूरी करने के बाद भी कार्यालय के काम से कहीं बाहर जाता है और उस बीच कोई दुर्घटना हो जाती है तो उसे भी सेवा कार्यों के दौरान घटी दुर्घटना माना जायेगा। इसी प्रकार यदि सेवा कार्यों के तनाव से ग्रस्त व्यक्ति किसी शारीरिक या मानसिक रोग से पीडि़त हो जाता है तो ऐसी दुर्घटनाओं को भी सेवा कार्यों के दौरान घटित दुर्घटना माना जा सकता है।
विजय कुमार फरवरी 1989 में भारतीय फौज में शामिल हुआ था। जनवरी 1990 को उसे डोगरा रेजीमेंट में शामिल कर दिया गया। वर्ष 2005 के मई और जून माह में उसे 30 दिन की वार्षिक छुट्टी दी गई जब वह अपनी बहन के साथ हिमाचल प्रदेश से जालन्धर चला गया जहाँ उसे अपने छोटे भाई के विवाह के लिए आभूषण आदि खरीदने थे। छुट्टियों के पांचवें दिन रात्रि 8 बजे जब वह जालन्धर में अपनी बहन के घर पर सीढि़याँ चढ़ रहा था उस वक्त घर की लाइट चली गई और अंधेरा होने के कारण वह सीढि़यों से गिर गया। इस दुर्घटना के बाद पहले उसे किसी निजी अस्पताल में चिकित्सा दी गई और अगले दिन उसे जालन्धर के मिलिट्री अस्पताल में दाखिल करवा दिया गया जहाँ तीन-चार महीने तक वह उपचाराधीन रहा। वह 60 प्रतिशत अपंग घोषित हो चुका था। फौज के चिकित्सा बोर्ड ने उसे ड्यूटी के लिए अक्षम समझते हुए नौकरी से निकालने की सिफारिश की और परिणामतः उसे 28 फरवरी, 2006 को नौकरी से निकाल दिया गया। वह 17 वर्ष की नौकरी कर चुका था। उसे सभी वित्तीय लाभ तथा पेंशन आदि के लाभ भी दे दिये गये। विजय कुमार ने अपंगता के बदले मुआवज़े की माँग की, परन्तु उसके कार्यालय ने उसकी यह माँग ठुकरा दी क्योंकि उसके साथ घटित दुर्घटना का मिलिट्री सेवा के साथ कोई सम्बन्ध स्थापित नहीं होता था। विजय कुमार ने उच्चाधिकारियों के समक्ष अपील की तथा कई बार ज्ञापन दिये। फौज की अपील समिति ने भी उसके आवेदनों को अस्वीकार कर दिया। इस पर विजय कुमार ने सशत्र सेवा अधिकरण के समक्ष अपनी याचिका प्रस्तुत की। उसकी याचिका को स्वीकार करते हुए अधिकरण ने मुआवज़े का आदेश दिया। अधिकरण के इस आदेश के विरुद्ध केन्द्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील प्रस्तुत की।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति श्री तीरथ सिंह ठाकुर तथा श्रीमती आर. भानुमति ने इस अपील पर सुनवाई की। फौज के सेवा नियमों में यह प्रावधान है कि कुछ परिस्थितियों में तकनीकी रूप से ड्यूटी पर न होते हुए भी किसी कर्मचारी के साथ घटित दुर्घटना के बदले मुआवज़ा निर्धारण के लिए उसे ड्यूटी पर ही मान लिया जाता है। जब कोई व्यक्ति स्थानान्तरण की प्रक्रिया में एक स्थान से दूसरे स्थान पर ड्यूटी के लिए जाता है तो मार्ग में घटित दुर्घटना को भी ड्यूटी के दौरान घटित दुर्घटना माना जायेगा। इसी प्रकार जब कोई व्यक्ति अन्य सहयोगियों के साथ या अकेला फौज के द्वारा आयोजित किसी मनोरंजन कार्य में भाग ले रहा होता है।
सर्वोच्च न्यायालय के एक पूर्व निर्णय सुखवन्त सिंह 2012 में इस सम्बन्ध में कई व्यवस्थाएँ निर्धारित की गई हैं। दुर्घटना का सेवा कार्यों के साथ कुछ न कुछ सम्बन्ध अवश्य होना चाहिए। दुर्घटना के दौरान वह किसी ऐसे कार्य को कर रहा हो जो उसकी ड्यूटी से सम्बन्धित हो। जब कोई व्यक्ति छुट्टी के दौरान अपने घर पर कोई ऐसा कार्य कर रहा हो जिसका उसके सेवा कार्यों से कोई सम्बन्ध न हो तो ऐसी दुर्घटना को सेवा कार्यों के दौरान घटित दुर्घटना नहीं माना जा सकता। विजय कुमार अपनी बहन के घर पर जब सीढि़यों से गिरा तब वह छत पर सिगरेट पीने के लिए जा रहा था। इस कार्य का उसकी सेवा के साथ कोई दूर का भी सम्बन्ध नजर नहीं आता। विजय कुमार की तरफ से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि वह मिलिट्री सेवा के लम्बे तनाव के कारण सीढि़यों से गिर गया था। सर्वोच्च न्यायालय ने इस तर्क को भी स्वीकार नहीं किया, क्योंकि वह अचानक लाइट चली जाने के कारण अंधेरा होने पर गिर गया था। इन परिस्थितियों में सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार की अपील को स्वीकार करते हुए अधिकरण के निर्णय को रद्द कर दिया।
-विमल वधावन योगाचार्य, एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट