सोशल मीडिया साइट्स फेसबुक, ट्विटर पर जर्मनी में सख्ती का नया कानून लागू
- कानून रिव्यू/ इंटरनेशनल
———–सावधान! यदि सोशल साइट्स नफरत फैलाने के मकसद से कोई भी कंटैंट डाला तो जुर्माने की एक भारी कीमत अदा करनी पडेगा और यह जुर्माने राशि कोई थोडी मोडी नही बल्कि अरबो में होगी। नफरत फैलाने की सामग्री डालने पर सोशल नैटवर्किंग कंपनियों को 370 करोड रूपये तक का जुर्माना अदा करना पडेगा। यह नया कानून जर्मनी में लागू कर दिया गया है। जर्मनी की तर्ज पर भारत जैसे देश में इस तरह के कानून की मांग तेजी से उठनी शुरू हो गई है। यहां पर सोशल साइट्स को नफरत फैलाने के लिए धडल्ले से उपयोग किया जा रहा है। हालांकि सोशल साइट्स के लिए यहां पर साइबर एक्ट में कई कानूनी स्थितियां मौजूद हैं, फिर भी नफरत का माहौल पैदा करने के लिए सारे हथकंडे अपनाए जाते रहते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक जर्मन में अगर फेसबुक और ट्विटर पर अगर कोई भी सांप्रदायिक और नफरत फैलाने वाले कंटैंट के कारण विवाद पैदा हुआ तो सोशल नैटवर्किंग कंपनियों को अरबों रुपयों में इसका हर्जाना चुकाना पड़ेगा।
जर्मन द्वारा लागू नए कानून के मुताबिक यह रकम 5 करोड़ 80 लाख डालर यानी 370 करोड़ रुपए तक हो सकती है। हालांकि सांप्रदायिक कंटैंट को हटाने के लिए सोशल मीडिया साइट्स को 24 घंटे तक का समय दिया जाएगा। पेचीदा मामलों में पोस्ट को हटाने के लिए एक सप्ताह तक का समय होगा। इस कानून के लागू होते ही विवाद भी छिड़ गया है। हालांकि स्वतंत्र भाषण को लेकर इसकी आलोचना भी हुई लेकिन फिर भी यह कानून लागू कर दिया गया।
क्या है द नैटवर्क एनफोर्समैंट एक्ट
————————- ————इस एक्ट को सोशल नैटवर्क पर अधिकारों के प्रवर्तन व उनमें सुधार के लिए शुरू किया गया है। यह एक्ट उन सोशल मीडिया नैटवर्क पर लागू किया गया है जिनमें यूजर्स की संख्या दो मिलियन या इससे अधिक है। माना जा रहा है कि ये साइट्स लाभ कमाने के लिए विवादित भाषणों वाले कन्टैंट को रिमूव नहीं करतीं जिस वजह से इस एक्ट को लागू किया गया है। 2018 के शुरू में ही फेसबुक और ट्विटर पर शिकंजा कसता जा रहा है। इन कंपनियों के लिए ऐसे भारी जुर्माने से बचने का यह एक चुनौतीपूर्ण काम हो सकता है।
इस कारण लागू किया गया यह कानून
पिछले साल जर्मनी में सोशल साइट्स पर लोगों द्वारा फैलाए गए सांप्रदायिक और विवादित भाषण आलोचनाओं और चिंताओं का विषय बने रहे। जिसके बाद जर्मन पुलिस ने इन भाषणों को लेकर 36 घरों पर छापेमारी की। इस कानून को पहले जून में पारित किया गया था लेकिन इसे कुछ समस्याओं के चलते 31 दिसम्बर के बाद लागू करने की बात कही गई थी।