-विमल वधावन योगाचार्य,
अपराधी प्रवृत्ति के लोगों में सामान्यतः कामवासना अधिक होती है। इसी कामवासना का परिणाम होता है, व्यक्ति महिलाओं को केवल सुन्दरता और सैक्स की दृष्टि से ही देखता है। मनुष्य का यह दृष्टिकोण तो उन सामान्य लोगों में भी विद्यमान रहता ही है जो बेशक अन्य अपराधों में लिप्त न भी हों। मनुष्य की दृष्टि को सुदृष्टि में बदलने के दो ही मार्ग हैं, प्रथम – उसके अन्तरात्मा में महिलाओं के प्रति सम्मान और उनकी सुरक्षा के साथ-साथ यह विचार भी भरा जाये कि महिलाओं के प्रति कुदृष्टि रखने वाला व्यक्ति कभी शान्त और सुखी रह ही नहीं सकता, इसके अतिरिक्त दूसरा मार्ग है कानून और दण्ड का, जिसका डर व्यक्ति को महिलाओं के प्रति सचेत व्यवहार के लिए बाध्य कर सकता है। प्रथम मार्ग स्व-इच्छा पर आधारित धर्म और प्रेरणा का मार्ग है तो दूसरा जोर जबरदस्ती पर आधारित कानूनी मार्ग है। समाज और सरकार को पहले मार्ग का प्रयोग ही अधिक करना चाहिए। उसके बावजूद भी जब कुछ सिरफिरे लोग अपनी हरकतों से बाज न आयें तो उनके लिए दूसरा मार्ग पुलिस की वर्दी के रूप में तैयार रहना चाहिए।
दिल्ली में बढ़ती गुंडागर्दी की आँच महिलाओं पर विशेष रूप से बढ़ती जा रही है। दिल्ली के लगभग सभी स्कूलों के आस-पास अक्सर उसी क्षेत्र के मनचले युवकों को दो पहिया वाहनों पर मंडराते देखा जा सकता है। स्कूल आती-जाती कन्याओं को घूरते रहना, पास से निकलते हुए तरह-तरह के व्यंग बाण छोड़ना, हल्की सी बातचीत होने पर लड़की को अपने जाल में फंसा लेना और फिर यौन शोषण की अंतिम परिणति बलात्कार या भगाकर ले जाना आदि सभी प्रकार की घटनाएँ इन मनचलों के लिए खेल सी बन जाती है। इनके खेल में लड़की का जीवन बरबाद हो जाता है। लड़कियाँ यदि अपने आपमें सचेत भी रहें तो भी उनकी जीवनचर्या में बाधा तो खड़ी हो ही जाती है।
इस वातावरण के दृष्टिगत दिल्ली के कई क्षेत्रों में अब कन्याओं के माता-पिता ने टोलियाँ बना-बनाकर इन मनचले युवकों पर नजर रखनी प्रारम्भ कर दी है। ‘‘रोको-टोको और पूछो’’ की नीति के तहत ये माता-पिता इन युवकों को रोककर उनसे क्षेत्र में भ्रमण का कारण पूछते हैं। इस कार्य में कहीं-कहीं तो इन्हें स्थानीय पुलिसकर्मियों का सहयोग भी मिलता है। युवकों द्वारा संतोषजनक उत्तर न देने पर पुलिस रिकार्ड में उनका नाम फोटो आदि दर्ज करवाये जाते हैं या उनके माता-पिता को बुलवाकर शर्मिन्दा किया जाता है। यह अभियान दिल्ली के यमुनापार क्षेत्रों खजूरी खास, तुकमीरपुर और यमुना विहार आदि में अच्छा चल रहा है। तुकमीरपुर तो मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र है। स्वाभाविक तौर पर इसमें मुस्लिम लड़कियाँ भी हैं। मनचले युवक भी अधिकतर मुस्लिम हैं और मुस्लिम माता-पिता ने ही अपनी कन्याओं की रक्षा के लिए यह अभियान चलाया है। इस अभियान में कई बार तो शादीशुदा और बाल बच्चेदार पुरुष भी लड़कियों को छेड़ते हुए पकड़े गये हैं। इस अभियान का अच्छा प्रभाव क्षेत्र में देखने को मिल रहा है। इस अभियान से जुड़े हुए भानु प्रकाश, विजेन्द्र सिंह, आनन्द त्रिवेदी आदि ने बताया कि अनेकों मुस्लिम माता-पिता अब इस अभियान में जुड़ रहे हैं। रफीक अहमद, चैधरी साजिद अली आदि माता-पिता भी इस अभियान के सूत्रधार हैं। अभिभावकों ने कई बार लड़कों को पकड़-पकड़कर सड़क पर पिटाई भी की है और उन्हें मुर्गा बनाकर शर्मिन्दा भी किया गया है। माता-पिता एक बार पहल करेंगे तो पुलिस को पहले तो बेशक शर्मिन्दा होकर इसमें सहयोग करना पड़े परन्तु अन्ततः पुलिस के विद्वान उच्चाधिकारी इस वातावरण की गम्भीरता को समझेंगे और अवश्य ही यह अभियान एक सख्त कानूनी कार्यवाही के रूप में चल पड़ेगा।
उत्तर पूर्वी दिल्ली पुलिस के उपायुक्त श्री संजीव के प्रयास से इस अभियान में अभिभावकों को पुलिस का पूरा सहयोग मिल रहा है। उपायुक्त ने अपने क्षेत्र के सभी सहायक आयुक्तों और थानाध्यक्षों की मीटिंग बुलाकर उन्हें सख्त आदेश दिया है कि स्कूल प्रारम्भ होने और छुट्टी के वक्त विशेष पुलिसकर्मी स्कूल के आस-पास तैनात किये जायें जिससे लड़कियों को स्कूल आने-जाने में कोई परेशानी न हो और मनचले युवकों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्यवाही प्रारम्भ की जा सके।
वैसे यह दृश्य दिल्ली के बाहर अन्य राज्यों में भी देखा जा सकता है। पंजाब, उत्तर प्रदेश और हरियाणा प्रान्तों में तो मैंने स्वयं भी अनेकों बार स्कूली छात्राओं के प्रति मनचला दृष्टिकोण साक्षात् देखा है। अपराधी मानसिकता दुनिया के सभी हिस्सों में लगभग एक सी होती है। हाल ही में निर्भया बलात्कार तथा हत्या के एक दोषी का ब्रिटेन की एक महिला पत्रकार ने जब साक्षात्कार करके एक वृत्तचित्र तैयार किया तो उस वृत्तचित्र का औचित्य सिद्ध करते हुए उस महिला ने बताया कि समाज में ऐसे मनचले लोगों के द्वारा महिलाओं को लगातार घूरते रहने की घटनाएं बेशक अपराध की श्रेणी में न आयें परन्तु इससे समाज के उस दृष्टिकोण का पता चलता है कि महिलाओं को केवल प्रदर्शन और मनोरंजन की वस्तु समझा जाता है। छेड़खानी से लेकर बलात्कार तक के अपराध करने वालों की मानसिकता अत्यन्त दूषित हो चुकी है। इस मानसिकता को यदि प्रथम अवस्था में ही दुरूस्त न किया जाये तो कुछ समय बाद यही मानसिकता महिलाओं के प्रति घिनौने अपराधों का रूप ले लेती है।
सारे देश की जनता को ऐसी मानसिकता के विरुद्ध डटकर मोर्चा खड़ा कर देना चाहिए। कुछ थोड़े से माता-पिता भी यदि पहल करके स्कूली छात्राओं की सुरक्षा को लेकर यदि कमर कस लें और थोड़ा समय और श्रम इस कार्य के लिए लगायें तो बड़े अपराधों को टाला जा सकता है। कन्याओं की स्कूल से छुट्टी के समय माता-पिता को संगठित होकर स्वयं निगरानी करनी चाहिए। इसके लिए स्थानीय पुलिस को छुट्टी के समय स्कूलों के आस-पास गश्त बढ़ाने का निवेदन किया जाये। मनचलों की फोटो खींचकर उनकी मोटरसाईकिल नम्बर सहित थानों में शिकायत दर्ज करानी चाहिए। इनमें से यदि किसी मनचले को पकड़ लिया जाये तो उसका जुलूस भी निकाला जाना चाहिए। ऐसे लड़कों के गले में अपने अपराध को स्वीकार करने तथा प्रायश्चित करने की पट्टियाँ भी टांगी जा सकती हैं। यदि ये मनचले किसी स्कूल के छात्र हों तो उनकी शिकायत उनके विद्यालय प्रमुख को भी देनी चाहिए। पुलिस तथा स्कूल प्रबन्धन मिलकर ऐसे मनचलों को अच्छा सबक सिखा सकते हैं।
अभी हाल ही में नागालैण्ड की एक युवती के बलात्कारी को स्थानीय लोगों ने तो जेल के अन्दर से बाहर निकाल लिया और सड़क पर उसका जुलूस निकालने के बाद उसे पीट-पीटकर हत्या कर दी। यह दण्ड प्रक्रिया बेशक कानून के दायरे से बाहर चली गई थी परन्तु जनता का आक्रोश यह सिद्ध कर रहा है कि जनता को अब पुलिस, जेलों और अदालतों पर विश्वास नहीं रहा। निर्भया बलात्कार के बाद भी जनता के बीच ऐसे नारे सुनाई दिये थे जिसमें जनता ‘‘बलात्कारियों को हमारे हवाले करो’’ के नारे लगा रही थी। स्वाभाविक तौर पर यदि महिलाओं के साथ गन्दा सलूक करने वाला व्यक्ति आक्रोश से भरी जनता के हाथ आ जाता है तो उसका यही हाल होता है। कानून जब अपराधियों को समय पर दण्डित नहीं कर सकता तो आक्रोश से भरी जनता को दण्डित करने के लिए कानून के इन कर्णधारों – पुलिस तथा न्यायाधीशों में इतना आत्मिक बल कहाँ से आयेगा। न्याय व्यवस्था की लच्चरता यह सिद्ध कर रही है कि जनता को अपनी रक्षा स्वयं करने में हिचकिचाना नहीं चाहिए। विशेष रूप से स्कूली कन्याओं को तो जीवन के प्रारम्भिक दौर में ही ऐसी यातनाओं का शिकार न होने दिया जाये।