–—-चिमनियों से सालाना निकलने वाला 7.68 लाख टन कोयले का धुआं आसमान में नहीं जाएगा।
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——जिग जैग का नियम लागू——–
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कानून रिव्यू/हरियाणा
- ———————————हरियाणा मे जिग जैग का नियम लागू हो जाने से अब काले धुएं से निजात मिलनी तय है। हरियाणा सरकार और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने जिग जैग (टेढ़ा-मेढ़ा) नियम लागू कर दिया है। इससे अब नए नियमों का पालन करने वालों लोगों को ही लाइसेंस का नवीनीकरण किया जाएगा और नियमों का पालन किए बगैर वे ईंट भट्ठा संचालित नहीं कर सकेंगे। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि प्रदेश भर के ईंट भट्ठों की चिमनियों से सालाना निकलने वाला 7.68 लाख टन कोयले का धुआं आसमान में नहीं जाएगा। प्रदूषण के कमी आने के साथ ही भट्ठा कारोबारियों को सालाना 61.44 करोड़ रुपये तक की बचत होगी। उल्लेखनीय है कि राज्य में 3200 ईंट भट्टे हैं, जिनमें से मौजूदा वक्त में 2200 ही संचालित हो रहे हैं। नए नियमों का पालन कराने के लिए भट्ठा संचालकों ने छह से आठ माह तक की छूट मांगी है ताकि नए सिरे से भट्ठों पर काम कराया जा सके। इन सभी ईंट भट्ठों पर करीब 15 लाख मजदूर कार्यरत हैं। सालाना औसतन 1600 करोड़ ईंट तैयार होती हैं। बता दें कि एक ईंट भट्ठे पर सालभर में 40 से 50 लाख तक ईंट तैयारी की जाती हैं। अब एक चक्कर पर सौ के बजाय 60 टन से ही चलेगा काम रू प्रदेशभर में करीब 3200 ईंट भट्ठे संचालित थे। पिछले कुछ माह से महज 2200 ईंट भट्ठे काम कर रहे हैं। असम, झारखंड व दूसरे राज्यों से कोयले की आपूर्ति होती है। सीजन के दौरान एक चक्कर पर औसतन 100 टन तक कोयला उपयोग होता था। सीजन में पांच से सात चक्कर तक ईंट बनकर तैयार होती हैं। इस हिसाब से प्रदेश भर के भट्ठों के लिए 19.2 लाख टन कोयले की जरूरत होती थी। नए नियमों के हिसाब से 11.52 लाख टन कोयले की जरूरत होगी। कोयला करीब 8000 रुपये प्रति टन के हिसाब से आता है। बदले नियमों के हिसाब से एक चक्कर पर औसतन सौ टन के बजाय महज 60 टन तक कोयले की ही जरूरत होगी।
जिग जैग नियम से क्या फायदा होगाः-
———————————————————————————————–इसका फायदा यह होता है कि धुआं पंखे से छनकर काले के बजाय सफेद और हलके नीले रंग में तब्दील होकर आसमान में जाएगा। इससे प्रदूषण की संभावना कम हो जाएगी। जो नियमों का पालन करेंगे, उन्हीं को संचालन की अनुमति दी जाएगी। रिन्युअल भी तभी मिलेगा जब नियम पूरे होंगे। सात से आठ लाख टन तक कोयला यदि कम जलेगा तो आसमान में धुआं भी कम जाएगा। यदि प्रदूषण रोकने के लिए धुआं भी फिल्टर होकर जाएगा तो वायु प्रदूषण से संबंधित रोगों से राहत मिलेगी। इससे हरियाली भी बचेगी।
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