गुजरात के तत्कालीन गृह मंत्री हरेन पंड्या की हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाई कोर्ट के फैसले को पलटा
कानून रिव्यू/नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2013 में गुजरात के तत्कालीन गृह मंत्री हरेन पंड्या की हत्या के मामले में गुजरात हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए सभी आरोपियों को दोषी करार देकर सजा को बहाल कर दिया है। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने सीबीआई और गुजरात सरकार द्वारा दायर अपील पर फैसला सुनाया है जिसमें वर्ष 2003 में राज्य के पूर्व गृह मंत्री हरेन पंड्या की हत्या के आरोपों का सामना कर रहे 12 व्यक्तियों को बरी करने के फैसले को चुनौती दी गई थी। पीठ ने गैर सरकारी संगठन सेंटर फॉर पब्लिक इंट्रेस्ट लिटिगेशन सीपीआईएल द्वारा दायर उस ताजा जनहित याचिका को खारिज कर दिया और 50000 रुपये का जुर्माना लगाया जिसमें अदालत की निगरानी में हत्या की नए सिरे से जांच की मांग की गई थी। हरेन पंड्या गुजरात में तत्कालीन नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार में मंत्री थे। 26 मार्च 2003 को अहमदाबाद में लॉ गार्डन के पास सुबह की सैर के दौरान उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। सीबीआई के अनुसार राज्य में वर्ष 2002 के सांप्रदायिक दंगों का बदला लेने के लिए उनकी हत्या कर दी गई थी। सीबीआई और राज्य पुलिस ने 29 अगस्त 2011 को गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा आरोपियों को दोषमुक्त करार देकर बरी किए जाने पर सवाल उठाते हुए अपील दायर की थी। ट्रायल कोर्ट ने जून 2007 में पंड्या की हत्या के लिए 12 लोगों को दोषी ठहराया था। लेकिन वर्ष 2011 में हाई कोर्ट ने सभी को बरी दिया। गुजरात हाई कोर्ट ने ठीक से जांच नहीं करने पर सीबाआई की आलोचना करते हुए कहा था कि वर्तमान मामले के रिकार्ड से एक चीज स्पष्ट रूप से निकलकर सामने आती है कि हरेन पंड्या हत्या के मामले की ठीक से जांच नहीं की गई है और इसमें अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। अदालत ने कहा कि संबंधित जांच अधिकारियों को उनकी अयोग्यता के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए क्योंकि इससे अन्याय कई व्यक्तियों का उत्पीड़न और सार्वजनिक संसाधनों और न्यायालयों के सार्वजनिक समय की भारी बर्बादी होती है। शीर्ष अदालत ने इस साल 31 जनवरी को मामले में अपील पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। इससे पहले शीर्ष अदालत ने 5 जनवरी 2012 को उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सीबीआई और राज्य द्वारा दायर अपीलों को स्वीकार किया था। मुख्य आरोपी असगर अली के उस बयान के आधार पर विशेष पोटा अदालत द्वारा एक बड़ी साजिश के लिए आरोपियों को दोषी ठहराया गया था जिसमें उसने यह माना था कि वर्ष 2002 के दंगों का बदला लेने के लिए गुजरात के वीएचपी प्रमुख और अन्य हिंदू नेताओं पर हमला करने की योजना बनाई गई थी। इस मामले में अन्य आरोपी हैं . मोहम्मद रउफ, मोहम्मद परवेज, अब्दुल कयूम शेख, परवेज खान पठान उर्फ अतहर परवेज, मोहम्मद फारूक उर्फ हाजी फारूक, शाहनवाज गांधी, कलमा अहमद उर्फ कलीमुल्लाह, रेहान पुत्तावाला, मोहम्मद रियाज सरेशवाला और अनीज माचेलिस मोहम्मद सैफुद्दीन। सीबीआई के अनुसार पंड्या की हत्या से पहले दोषियों ने 11 मार्च 2003 को एक स्थानीय वीएचपी नेता जगदीश तिवारी पर जानलेवा हमला किया था। सीबीआई ने दावा किया था कि ये दो घटनाएं गोधरा के बाद के दंगों के बाद लोगों में आतंक फैलाने की एक ही साजिश का हिस्सा थीं। यह भी दावा किया था कि फरार आरोपी रसूल पारती और मुफ्ती सूफियान पतंगिया द्वारा आरोपियों को पाकिस्तान भेजा गया था और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के इशारे पर प्रशिक्षित किया गया था। इस मामले की जांच पहले राज्य पुलिस ने की थी लेकिन बाद में इसे सीबीआई को सौंप दिया गया था। गुजरात कैबिनेट में भाजपा नेता और गृह मंत्री रहे हरेन पंड्या की हत्या के लगभग 16 साल बाद सेंटर फॉर पब्लिक इंट्रेस्ट लिटिगेशन सीपीआईएल द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की गई जिसमें अदालत की निगरानी में मामले की नए सिरे से जांच कराने की मांग की गई थी। याचिका में यह कहा गया कि सोहराबुद्दीन मामले के एक गवाह आजम खान द्वारा किए गए ताजा खुलासे के बाद मामले की नए सिरे से जांच की जरूरत है। याचिका के अनुसार 3 नवंबर को आज़म खान ने सोहराबुद्दीन मामले की सुनवाई के दौरान एक बयान दिया था कि सोहराबुद्दीन शेख ने उन्हें बताया था कि हरेन पंड्या की हत्या भाड़े की हत्या थी जिसके लिए डीजी वंजारा द्वारा कांट्रेक्ट दिया गया था। याचिका में आगे यह कहा गया कि उन्होंने यह भी खुलासा किया था कि सोहराबुद्दीन के सहयोगी तुलसीराम प्रजापति ने 2 अन्य लोगों के साथ उस कांट्रेक्ट के तहत हरेन पंड्या की हत्या की थी। याचिका में पत्रकार राणा अय्यूब द्वारा लिखित पुस्तक गुजरात फाइल्स में दर्ज एक वार्तालाप का उल्लेख किया गया है। बातचीत के अनुसार हरेन पंड्या मामले को संभालने वाले सीबीआई अधिकारी वाई0 ए0 शेख ने अय्यूब से खुलासा किया कि सीबीआई ने अपनी कोई जांच नहीं की थी और केवल वही माना जो गुजरात पुलिस द्वारा उन्हें बताया गया था। उन्होंने कथित तौर पर यह भी खुलासा किया कि हरेन पंड्या की हत्या एक राजनीतिक साजिश थी और साजिश में कई राजनेताओं के साथ.साथ डीजी वंजारा सहित आईपीएस अधिकारी भी शामिल थे। इसमें वर्ष 2013 की टाइम ऑफ इंडिया रिपोर्ट का भी उल्लेख किया गया है जिसमें कहा गया है कि वंजारा ने गुजरात में मुठभेड़ की आड़ में हत्याओं की जांच करने वाली टीम को बताया था कि पंड्या की हत्या राजनीतिक साजिश के तहत की गई थी।