भारत के इस हिजाब विवाद में अमेरिका भी कूदा
सियासत से लेकर अदालत तक हर कोई विवाद में उलझ गया है। ऐसे में यह समझना जरूरी है कि आखिर यह मुद्दा क्या है, क्यों इस विवाद ने राजनीतिक रंग ले लिया है, कहां से यह मुद्दा शुरू हुआ और अलग.अलग पक्षों का इस पर क्या कहना है? ’’कानून रिव्यू’’ यहां एक.एक करके इन सभी परतों को हटाएगी।
मौहम्मद इल्यास-’’दनकौरी’’/नई दिल्ली
कर्नाटक में हिजाब विवाद ने तूल पकड़ लिया है। इसे लेकर राज्य में सियासत गरमा गई है। इसके समर्थन और विरोध में सड़कों पर लोग उतर रहे हैं। भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण ने कर्नाटक हाई कोर्ट के अंतरिम आदेश को चुनौती देने वाले एक याचिकाकर्ता के वकील से यह सोचने के लिए कहा कि क्या इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर लाना उचित है। सीजीआई ने मौखिक रूप से कहा कि इन बातों को बड़े स्तर पर न फैलाएं। हम इस पर कुछ भी व्यक्त नहीं करना चाहते हैं। जस्टिस रमण ने कामत से कहा कि हम इसे देख रहे हैं और हम जानते हैं कि क्या हो रहा है। सोचें, क्या इसे राष्ट्रीय स्तर पर लाना उचित है। वहीं भारत में हिजाब विवाद पर अमेरिका की ओर से भी टिप्पणी की गई है। बाइडेन प्रशासन के एक अधिकारी ने कहा है कि कर्नाटक सरकार को यह फैसला नहीं करना चाहिए कि कोई धार्मिक पोशाक पहने या नहीं। बाइडेन एडमिनिस्ट्रेशन में अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता मामले के राजदूत रशद हुसैन ने ट्वीट में यह बात कही है। आइए, जानते हैं कि यह मुद्दा क्या है। यानी सियासत से लेकर अदालत तक राज्य में हर कोई विवाद में उलझ गया है। ऐसे में यह समझना जरूरी है कि आखिर यह मुद्दा क्या है, क्यों इस विवाद ने राजनीतिक रंग ले लिया है, कहां से यह मुद्दा शुरू हुआ और अलग.अलग पक्षों का इस पर क्या कहना है? हम यहां एक.एक करके इन सभी परतों को हटाएंगे।
कहां से शुरू हुई यह पूरी कहानीः——
यह विवाद जनवरी में उडुपी के एक सरकारी महाविद्यालय से शुरू हुआ था। कॉलेज में छह छात्राएं तय ड्रेस कोड का उल्लंघन कर हिजाब पहनकर क्लास में आई थीं। इसके बाद इसी तरह के मामले कुंडापुर और बिंदूर के कुछ अन्य कॉलेजों में भी आए। राज्य में ऐसी कई घटनाएं हुई हैं, जहां मुस्लिम छात्राओं को हिजाब में कॉलेजों या कक्षाओं में जाने की अनुमति नहीं दी जा रही है। वहीं, हिजाब के जवाब में हिंदू स्टूडेंट भगवा स्कार्फ में कॉलेज आ रही हैं। बेलगावी के रामदुर्ग महाविद्यालय और हासन, चिक्कमंगलुरु और शिवमोगा में शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब या भगवा शॉल.स्कार्फ में छात्र.छात्राओं के आने की घटनाएं सामने आई हैं। कई संस्थानों ने इसे लेकर सख्त रुख अख्तियार किया। उन्होंने हिजाब और भगवा स्कार्फ दोनों में आने पर रोक लगा दी है। बन्नीमंतपा में हिजाब के पक्ष में लड़कियों के एक समूह के प्रदर्शन की खबरें आई।
मामले ने कैसे लिया राजनीतिक रंग?
राजनीतिक दलों ने इसमें हिंदू.मुस्लिम ऐंगल तलाश कर हवा देना शुरू का दिया है। यही कारण है कि इस विवाद ने अब राजनीतिक रंग लेना शुरू कर दिया है। कांग्रेस ने हिजाब पहनने के अधिकार पर मुस्लिम लड़कियों का समर्थन किया है। ऐसा करने वालों में राज्य के पूर्व सीएम सिद्धरमैया से लेकर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी तक हैं। कांग्रेस विधायक दल के नेता और पूर्व सीएम सिद्धरमैया ने बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर हिजाब के नाम पर राज्य में सांप्रदायिक विद्वेष पैदा करने की कोशिश करने का आरोप लगाया। उधर राहुल गांधी ने ट्वीट करके कहा कि स्टूडेंट के हिजाब को उनकी शिक्षा में आड़े आने देकर हम भारत की बेटियों का भविष्य लूट रहे हैं। मां सरस्वती सभी को ज्ञान देती हैं। वह भेद नहीं करती हैं। सिद्धरमैया ने दावा किया है कि संघ परिवार का मुख्य एजेंडा हिजाब के नाम पर मुस्लिम लड़कियों को शिक्षा से वंचित करना है। उन्होंने इस मुद्दे पर पीएम मोदी पर भी अटैक किया। पूर्व सीएम ने उन पर अनभिज्ञ बने रहने आरोप लगाया है। कहा है कि पीएम मोदी बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के बारे में बोलते हैं। क्या उन्हें इस घटना की जानकारी नहीं है?
क्या है कांग्रेस का पक्ष?
कांग्रेस का पक्ष है कि संविधान ने किसी भी धर्म को मानने का अधिकार दिया है। इसका मतलब है कि कोई भी अपने धर्म के अनुसार कुछ भी कपड़े पहन सकता है। हिजाब पहनने वाली छात्राओं को स्कूल में एंट्री करने से रोकना उनके मौलिक अधिकारों का हनन है।
बीजेपी का क्या है कहना?
भाजपा का इस मुद्दे पर स्टैंड बड़ा साफ और कड़ा है। उसका कहना है कि राज्य सरकार शिक्षा व्यवस्था के तालिबानीकरण की अनुमति नहीं देगी। भाजपा के प्रदेश इकाई के प्रमुख नलिन कुमार कटील ने कहा कि इस तरह की चीजों यानी क्लास में हिजाब पहनने की कोई गुंजाइश नहीं है। सरकार कठोर कार्रवाई करेगी। लोगों को कॉलेज के नियमों का पालन करना होगा। शिक्षा व्यवस्था के तालिबानीकरण की अनुमति नहीं देने देंगे।
हाई कोर्ट में पहुंच गया है, यह मामला
नौबत कोर्ट.कचहरी तक पहुंच चुकी है। इसमें पढ़ने वाली पांच लड़कियों ने संस्थान में हिजाब पर रोक के आदेश को चुनौती दी है। मामला हाई कोर्ट पहुंचने के बीच सीएम बसवराज बोम्मई ने सरकार के रुख के बारे में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा मंत्री बीसी नागेश और शीर्ष सरकारी अधिकारियों के साथ बैठक की थी।
क्या कहता देश का संविधान?
संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 तक में धर्म की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को लेकर जिक्र किया गया है। अनुच्छेद 25 (1) किसी भी धर्म को मानने, उसका अभ्यास करने और प्रचार करने का हक देता है। अनुच्छेद 25 धर्म की स्वतंत्रता पर दो तरह के अधिकार देता है। पहला अधिकार अंतःकरण की स्वतंत्रता को लेकर है। दूसरा अधिकार धर्म को निर्बाध तरीके से मानने और उसका प्रचार करने को लेकर है। हालांकि, सार्वजनिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए इसमें राज्य को अंकुश लगाने की भी शक्तियां दी गई हैं।
हिजाब विवाद में अमेरिका भी कूदा
भारत में हिजाब विवाद पर अमेरिका की ओर से भी टिप्पणी आ गई है। बाइडेन एडमिनिस्ट्रेशन में अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता मामले के राजदूत रशद हुसैन ने ट्वीट में टिप्पणी की है। रशद हुसैन ने कहा है कि कर्नाटक सरकार को इसका फैसला नहीं करना चाहिए कि कोई मजहबी पोशाक पहने या नहीं। भारतीय मूल के हुसैन ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर कहा कि किसी की मजहबी आजादी सुनिश्चित करने के लिए उसे उसके मजहब की पोशाक पहनने की आजादी भी होनी चाहिए। रशद हुसैन की जड़ें भारत के बिहार राज्य से जुड़ी हुई हैं। 41 वर्षीय हुसैन को 500 प्रभावशाली मुस्लिम लोगों में शामिल किया गया था। उन्हें पिछले वर्ष जुलाई महीने में अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता विभाग का एंबेसडर.एट.लार्ज नियुक्त करने की घोषणा की गई थी।
अभी अदालत में है मामला
हिजाब का मामला कर्नाटक हाई कोर्ट के सामने है। इस बीच मामला सुप्रीम कोर्ट के पास भी आ गया है। भारत की सर्वोच्च अदालत ने हिजाब विवाद में यह कहते हुए हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया कि वह हाई कोर्ट का आखिरी आदेश आने से पहले कोई टिप्पणी नहीं करेगा।
क्या इसे राष्ट्रीय स्तर पर लाना उचित हैःसीजेआई
भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण ने कर्नाटक हाई कोर्ट के अंतरिम आदेश को चुनौती देने वाले एक याचिकाकर्ता के वकील से यह सोचने के लिए कहा कि क्या इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर लाना उचित है। सीजीआई ने मौखिक रूप से कहा कि इन बातों को बड़े स्तर पर न फैलाएं। हम इस पर कुछ भी व्यक्त नहीं करना चाहते हैं। जस्टिस रमण ने वकील से कहा कि हम इसे देख रहे हैं और हम जानते हैं कि क्या हो रहा है। सोचें, क्या इसे राष्ट्रीय स्तर पर लाना उचित है।