अगर पक्षकार सहमति देने की स्थिति में नहीं है तो शादी वैध नहीं है इसका मतलब है कि शादी के लिए सहमति जरूरी है
कानून रिव्यू/नई दिल्ली
————————-अगर शादी की सहमति जबरदस्ती या धोखे से ली गई है तो शादी खत्म घोषित कराई जा सकती है। इसका मतलब है कि शादी के लिए सहमति जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू विवाह कानून पर विचार करने से इंकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि रिट याचिका में इस मसले पर सुनवाई नहीं हो सकती। कोर्ट ने कानून के प्रावधानों की वैधानिकता पर विचार करने या उन्हें स्पष्ट करने की मांग साफ तौर पर ठुकरा दी। हालांकि परिवार पर जबरदस्ती शादी कराने का आरोप लगा रही कर्नाटक की युवती को कोर्ट ने सुरक्षा मुहैया कराने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि अगर युवती नहीं जाना चाहती तो उसे बाध्य नहीं किया जा सकता। ये बात मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, एएम खानविल्कर व डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने बिना सहमति के जबरदस्ती शादी कराने का आरोप लगा रही कर्नाटक के एक रसूखदार परिवार की युवती की याचिका पर सुनवाई के दौरान कही। कोर्ट ने याचिका को बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका मानते हुए फिलहाल दिल्ली में रह रही युवती को सुरक्षा देने का केंद्र को निर्देश दिया। हालांकि युवती की ओर से पेश वरिष्ठ वकील इंद्रा जयसिंह अंत तक इस मांग पर अड़ी रहीं कि कोर्ट हिन्दू विवाह अधिनियम के प्रावधानों को स्पष्ट करे क्योंकि उसमें शादी के लिए स्वतंत्र सहमति की अनिवार्यता नहीं है। जयसिंह ने यह भी कहा कि इस कानून में शादी की रस्मों और प्रक्रिया को संहिताबद्ध नहीं किया गया है इसलिए कानून की धारा 5 व 7 के अंशों पर कोर्ट विचार करे। उन्होंने कहा कि परिवार ने जबरदस्ती शादी कराई है लड़की ससुराल नहीं जाना चाहती कोर्ट उसे सुरक्षा दे, साथ ही सहमति के स्पष्ट प्रावधान न करने वाले कानूनी अंशों को रद्द करे। लेकिन पीठ ने कानून की व्याख्या की मांग ठुकराते हुए कहा कि इस याचिका में ऐसी मांग पर विचार नहीं हो सकता। याचिकाकर्ता की सुरक्षा की मांग पर विचार होगा लेकिन शादी को शून्य घोषित कराने के लिए उसे निचली अदालत में याचिका दाखिल करनी होगी। अगर निचली अदालत शादी के लिए उसकी स्वतंत्र सहमति न होने की मांग नहीं मानती और हाईकोर्ट भी नहीं मानता उसके बाद यहां आ सकती है और तब कोर्ट उसकी अपील पर सुनवाई कर सकता है। तभी जस्टिस चंद्रचूड़ ने जयसिंह का ध्यान हिंदू विवाह कानून की धारा 5,11 और 12 के प्रावधानों पर दिलाते हुए कहा कि शादी के लिए जबरदस्ती या धोखे से सहमति लेने के आधार पर शादी को शून्य घोषित कराया जा सकता है। कानून में यह भी लिखा है कि अगर पक्षकार सहमति देने की स्थिति में नहीं है तो शादी वैध नहीं है इसका मतलब है कि शादी के लिए सहमति जरूरी है। कोर्ट ने कहा कि कानून स्पष्ट है इसे स्पष्ट करने या इस समय इस पर विचार करने की जरूरत नहीं है। जयसिंह ने कहा कि कोर्ट उन्हें निचली अदालत से होकर आने को कह रहा है। यही कोर्ट सीधे आदेश क्यों नहीं दे देता। लेकिन कोर्ट इस पर राजी नहीं हुआ। हालांकि युवती की सुरक्षा से संबंधित मुद्दे पर कोर्ट ने केन्द्र और कर्नाटक सरकार के साथ परिजनों को नोटिस जारी करते हुए मामले को 4 मई को फिर सुनवाई पर लगाने का आदेश दिया है।