सुप्रीम कोर्ट ने दहेज हत्या के एक मामले में मृतका की सास-ससुर द्वारा वृद्धावस्था और अधिक उम्र के आधार पर सजा कम करने की अपील को खारिज कर दिया है।
इस मामले में शादी के एक वर्ष के भीतर ही नवविवाहिता की हत्या कर दी गई थी। अभियुक्तो ने दहेज हत्या के इस अपराध पर पर्दा डालने के लिए नवविवाहिता की मौत डायरिया से होने की झूठी कहानी भी गढ़ी थी। इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने मृतका के सास-ससुर को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 304 B के तहत दहेज हत्या के अपराध दोषी ठहराते हुए उन्हें 10 वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी। जिसकी पुष्टि झारखंड हाईकोर्ट ने की थी।
सास-ससुर ने अपनी अधिक उम्र होने के आधार पर सजा कम करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। जस्टिस शाह और जस्टिस नागरत्ना से खण्डपीठ ने अपील खारिज करते हुए कहा कि हमें हाई कोर्ट द्वारा पुष्टि किए गए ट्रायल कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नजर नहीं आता।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में दहेज हत्या के मामलों में अपराधियों से बेहद कठोरता से निपटने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 304 B के तहत दहेज हत्या के अपराध समाज पर गम्भीर प्रभाव डालते हैं। भारतीय दण्ड संहिता में धारा 304 B को शामिल करने के पीछे विधायिका की भावना दहेज हत्या के अपराधियों से अत्यंत कठोरता से निपटने की थी। दहेज हत्या के मामलों में सजा का निर्धारण करते समय हमें विधायिका के इस इरादे को ध्यान में रखना ही होगा।
समाज में एक मजबूत संदेश जाना चाहिए कि जो व्यक्ति दहेज हत्या या दहेज निषेध अधिनियम के तहत अपराध करेगा, उसके विरुद्ध “लोहे के हाथों से कार्यवाही” (shall be dealt with Iron Hand) की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों की 10 साल की कठोर कारावास की सजा को बरकरार रखते हुए उनकी अपील खारिज कर दी।
केस : अजोला देवी बनाम झारखण्ड राज्य
बेंच : जस्टिस एम. आर. शाह और जस्टिस बी. वी. नागरत्ना
(सुप्रीम कोर्ट)
दिनांक : 10 अगस्त 2022