नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक निजी कॉलेज को पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स पूरा करने के बाद अनिवार्य सेवा न करने पर 5 लाख के बांड भुगतान के लिए मजबूर करने को अनुचित ठहराया है। कोर्ट ने कहा की प्राइवेट मेडिकल कॉलेज अपनी शिक्षा के बदले के फीस के रूप में पर्याप्त धनराशि पहले ही वसूल रहे हैं। मोटी फीस लेने के बाद सेवा बांड की शर्त लगाना अनुचित है । केवल सरकारी मेडिकल कॉलेज ही अनिवार्य सेवा की शर्त लगाकर बांड भरवा सकते हैं प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की खंडपीठ ने मध्य प्रदेश के निजी कॉलेज की विशेष अनुमति याचिका को खारिज करते हुए यह निर्णय दिया।
न्यायालय ने अपीलकर्ता कॉलेज का मूल दस्तावेज और प्रमाण पत्र को बांड का पैसा लिए बिना जारी न करने की शर्त को गैरकानूनी ठहराते हुए 30 दिनों की अवधि के भीतर वसूली गई पूरी राशि ब्याज सहित वापस करने के मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के फैसले को उचित ठहराया।
न्यायालय ने कहा कि यह हैरान करने वाली बात है, कि एक निजी संस्थान अपने छात्रों से सेवा बांड भरने के लिए बात कर रहा है न्यायालय ने कहा कि मेडीकल कॉलेज के छात्रों से केवल सरकार ही सेवा बांड मांग सकती है, क्योंकि वह मेडिकल शिक्षा को सब्सिडी देते हैं और सरकारी मेडिकल कॉलेजों के बांड सामान्य रूप से सार्वजनिक अस्पतालों की सेवा के लिए होते हैं।
दूसरी ओर निजी मेडिकल कॉलेज फीस के रूप में करोड़ों चार्ज करते हैं, इसीलिए वह यह नहीं कह सकते कि शिक्षा पूरी करने के बाद आपको हमारे पास सेवा करने का बांड भरना होगा। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि निजी मेडिकल कॉलेजों के पास अपने छात्रों से बांड मांगने की कोई शक्ति ही नहीं है।
न्यायालय ने मेडिकल कॉलेज द्वारा छात्र से वसूली गई धनराशि को ब्याज समेत वापस करने के मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले को उचित ठहराते हुए अपीलकर्ता मेडीकल कॉलेज को कोई भी राहत देने से इंकार कर दिया ।
केस टाइटल : रुकमणी वेंन दीपचंद गार्डी मेडिकल कॉलेज बनाम अंशुल जैन व अन्य
खंडपीठ : जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली (सुप्रीम कोर्ट)
दिनांक : 18 नवंबर 2022