एक फैमिली कोर्ट द्वारा एक मुस्लिम व्यक्ति द्वारा दिए जा रहे अपरिवर्तनीय तलाक (Irrevocable Talaq) की प्रक्रिया को बीच में ही रोक देने और उसे दूसरा विवाह करने से रोकने वाले दो अलग-अलग आदेशों को केरल हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया है।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि कोई भी अदालत किसी भी व्यक्ति को उसके पर्सनल लॉ के तहत मिले उपचारों का प्रयोग करने से नहीं रोक सकती है। ऐसा करना उस व्यक्ति के संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत मिले अधिकारों का उल्लंघन होगा।
इस मामले में एक मुस्लिम व्यक्ति (याचिकाकर्ता) ने मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार अपनी पत्नी को तलाक देने की प्रक्रिया शुरू की थी। लेकिन इस तलाक प्रक्रिया के पूरा होने से पहले ही पीड़िता पत्नी के आवेदन पर फैमिली कोर्ट में अस्थाई निषेधता के माध्यम से तलाक प्रक्रिया पर बीच में ही रोक लगा दी थी। इसके बाद पीड़िता पत्नी ने पति को दूसरी शादी करने से रोकने के लिए एक प्रार्थना पत्र फैमिली कोर्ट में दिया, जिस पर कार्रवाही करते हुए फैमिली कोर्ट ने याचिकाकर्ता (पति) को दूसरी शादी करने से रोक दिया था। याचिकाकर्ता ने फैमिली कोर्ट के उपर्युक्त दोनों आदेशों को संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत एक याचिका के माध्यम से केरल हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
याचिकाकर्ता पति की याचिका को स्वीकार करते हुए जस्टिस ए. मोहम्म्द मुश्ताक और जस्टिस सोफी थॉमस की खण्डपीठ ने अपने निर्णय में कहा कि किसी व्यक्ति को उसके पर्सनल लॉ के तहत उपलब्ध उपचारों का प्रयोग करने से रोकने में न्यायालय की कोई भूमिका नहीं है। न्यायालय को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 को ध्यान में रखना ही होगा, जो किसी भी व्यक्ति को अपने धर्म को मानने और अभ्यास करने की अनुमति देता है। हालाँकि किसी व्यक्ति द्वारा पर्सनल लॉ के अनुसार किए गए किसी कृत्य को पीड़ित व्यक्ति द्वारा न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है, लेकिन ऐसा किसी कृत्य के पूरा होने के बाद ही संभव है। इस मामले में न्यायालय के अधिकार क्षेत्र सीमित है।
तलाक की प्रक्रिया पूरी हो जाने के पश्चात ही यह निर्धारित किया जा सकता है तलाक पर्सनल लॉ की प्रक्रिया के अनुसार हुआ है अथवा नहीं। कोर्ट ने आगे कहा कि चुंकि मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार कोई पुरुष एक से अधिक विवाह कर सकता है अतः कोर्ट यह नहीं तय कर सकता कि उसे अपनी धार्मिक प्रथाओं, विवेक और विचार के अनुसार कार्य करना चाहिए अथवा नहीं।
हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के दोनों आदेशों को रद्द करते हुए कहा कि तलाक की प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद प्रतिवादी पत्नी अपनी शिकायतों के लिए सक्षम न्यायालय में याचिका दायर कर सकती है।
केस – अनबरुद्दीन बनाम सबीना
बेंच – जस्टिस ए. मोहम्मद मुश्ताक एवं जस्टिस सोफी थॉमस
दिनांक – 17 अगस्त 2022