दिल्ली हाईकोर्ट ने एक रिट याचिका पर निर्णय देते हुए कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार प्यूबर्टी उम्र के बाद 18 वर्ष से कम आयु की नाबालिक मुस्लिम लड़की भी अपनी मर्जी से शादी कर सकती है। उसके लिए लड़की के माता-पिता की सहमति अनिवार्य नहीं है। न्यायालय ने 15 वर्ष 5 महीने की उम्र में अपने माता की मर्जी के विरुद्ध शादी करने वाली नाबालिग मुस्लिम लड़की की शादी को पूरी तरह से कानून-सम्मत ठहराते हुए उसे अपने पति के साथ रहने की अनुमति दे दी। न्यायालय ने दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस को इस शादीशुदा जोड़े को सुरक्षा प्रदान करने का आदेश भी दिया।
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि मुस्लिम विधि में शादी के लिए लड़की का प्यूबर्टी उम्र (यौवनावस्था) का प्राप्त होना जरूरी है, न कि 18 वर्ष की उम्र का पूरा होना। सामान्य रूप से लड़की की 15 साल की उम्र 15 प्यूबर्टी उम्र (यौवनावस्था) मानी जाती है।
इस मामले में एक मुस्लिम लड़की (जन्मतिथि 2 अगस्त 2006) ने 11 मार्च 2022 को अपने माता-पिता की सहमति के बिना अपनी मर्जी से शादी कर ली थी और अपने पति के साथ चली गई थी। शादी के समय लड़की की उम्र केवल 15 वर्ष 5 महीना थी। इसके बाद लड़की के पिता ने लड़के के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता की धारा 363 (अपहरण) का मुकदमा दर्ज कराया था। पुलिस ने लड़की को 27 अप्रैल 2022 को उसके पति की कस्टडी से बरामद कर लिया। लड़की की मेडिकल जांच में पाया गया कि वह अनेक बार संभोग कर चुकी है और गर्भवती है। इसके बाद पुलिस ने FIR में भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376 (बलात्कार) और पॉक्सो की धारा 6 भी जोड़ दी गई और लड़की को बाल संरक्षण गृह भेज दिया गया। इसके बाद लड़की और उसके पति ने दिल्ली हाई कोर्ट में एक रिट याचिका दायर करके दोनों को एक साथ रहने देने और उन्हें पुलिस सुरक्षा प्रदान करने की मांग की थी। इसी रिट याचिका पर जस्टिस जसजीत सिंह की पीठ ने यह फैसला सुनाया।
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि मुस्लिम विधि के अनुसार शादी के लिए न्यूनतम 18 वर्ष की उम्रसीमा लागू नहीं होती। यदि लड़की ने प्यूबर्टी आयु प्राप्त कर ली है तो वह माता-पिता की सहमति के बिना अपनी मर्जी से शादी कर सकती है और अपने पति के साथ रह सकती है। न्यायालय ने इस मामले में पॉक्सो कानून की धारा 6 को भी लागू करने के लिए इंकार करते हुए कहा कि पॉक्सो अधिनियम का उद्देश्य बच्चों को यौन शोषण और यौन दुर्व्यवहार से सुरक्षा प्रदान करना है। हालाँकि पॉक्सो कानून सभी धर्मों पर समान रूप से लागू होता है लेकिन यह यौन शोषण का मामला नही है। यह एक ऐसा मामला है एक मुस्लिम युवक यूवती ने मुस्लिम विधि के अनुसार शादी कर ली और उसके बाद शारीरिक संबंध बनाए। इस प्रकार से याचिकाकर्ता कानूनी रूप से विवाहित जोड़ा है, जिसे अलग नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने यह भी कहा कि यदि याचिकाकर्ता को उसके पति से अलग किया गया तो यह उसके अजन्में बच्चें के लिए एक आघात होगा।
यदि याचिकाकर्ता (लड़की) ने जानबूझकर शादी के लिए सहमति दी है और खुश है, तो राज्य उसके निजी जीवन में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। याचिकाकर्ता एक साथ रहने के हकदार हैं, और दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस को उनकी सुरक्षा करने का आदेश दिया जाता है।
केस – फ़िजा एवं अन्य बनाम दिल्ली राज्य
बेंच – जस्टिस जसमीत सिंह (दिल्ली हाई कोर्ट)
दिनाँक – 17 अगस्त 2022