श्रीनगर, 16 नवम्बर। जम्मू कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने 16 नवंबर 2022 को अपने एक निर्णय में भारत सरकार के ही 2 विभागों या अंगों के बीच कानूनी लड़ाई को लेकर अप्रसन्नता व्यक्त की है। कोर्ट ने कहा कि एक ही सरकार के 2 अंग यदि आपसी विवाद को अदालत में लेकर आते हैं और कई सालों तक कानूनी लड़ाई लड़ते हैं, तो यह जनता के पैसे की बर्बादी है।
जस्टिस संजीव कुमार ने होटल कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया द्वारा दायर की गई एक रिट याचिका पर सुनवाई के बाद अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता “होटल कारपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड” भारत सरकार द्वारा के स्वामित्व वाली एक कंपनी है, जो नागरिक उड्डयन मंत्रालय भारत सरकार के द्वारा संचालित की जाती है। दूसरी ओर इस याचिका की प्रतिवादी पार्टी केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर की सरकार भी उपराज्यपाल के माध्यम से केंद्रीय गृह मंत्रालय के प्रति उत्तरदाई है। इस प्रकार दोनों ही पार्टियां केंद्र सरकार के दो अंग हैं। यह याचिका होटल कारपोरेशन ऑफ इंडिया द्वारा दायर की गई थी, जिसमें उसने प्रतिवादी जम्मू कश्मीर सरकार के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसके माध्यम से जम्मू-कश्मीर सरकार ने होटल को दी गई जमीन का पट्टा समय से पहले समाप्त करने का आदेश दिया था।
विभिन्न सरकारी विभागों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के बीच परस्पर विवादों को अदालत लाकर सालों तक कानूनी लड़ाई की प्रवृत्ति की निंदा करते हुए न्यायालय ने इसे सरकारी खजाने और संसाधनों की बर्बादी बताया। न्यायालय ने कहा कि एक ही सरकार के 2 अंगों के बीच के विवादों को अदालत में नहीं लाना चाहिए। भारत सरकार के 2 अंगों के बीच विवादों को ऑफिस मेमो के तहत प्रदान किए गए प्रशासनिक विवाद समाधान तंत्र के तहत सुलझाया जाना वांछनीय होगा।
खंडपीठ ने भारत सरकार को अपने कैबिनेट सचिव के माध्यम से नागरिक उड्डयन मंत्रालय के सचिव और गृह मामलों के सचिव को याचिकाकर्ता निगम और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर सरकार के बीच उठे विवाद पर न्याय निर्णय के लिए कानूनी मामलों के सचिव को भेजने के लिए कहा। अदालत आगे निर्देश दिया कि यदि कोई भी पक्ष समिति के द्वारा दिए गए निर्णय से संतुष्ट न हो, तो वह कैबिनेट सचिव के समक्ष अपील दायर करने के लिए स्वतंत्र होगा । जिसका निर्णय इस विषय पर अंतिम और दोनों पक्षों के लिए बाध्यकारी होगा।
खंडपीठ ने कैबिनेट सचिव को विवादित पक्षों को सूचित करते हुए इस बारे में उचित कदम उठाने के लिए 4 सप्ताह का समय दिया है।
कानून रिव्यू का मत :
जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट इस मामले में दिया गया निर्णय एक अत्यंत सराहनीय निर्णय है क्योंकि मुकदमों के बोझ से दबी भारतीय न्यायपालिका के विभिन्न हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में बहुत बड़ी संख्या में सरकारी मुकदमे लंबित हैं। कोई विवाद जब दो राज्य सरकारों के बीच अथवा केंद्र और राज्य सरकारों के बीच हो तब तो उनका सुप्रीम कोर्ट के समक्ष जाना संविधान सम्मत और उचित लगता है, लेकिन जहां पर एक ही सरकार के दो अंगों के बीच आपस में कोई विवाद है, तो उसे प्रशासनिक स्तर पर सुलझा लेना ही सबसे उत्तम रास्ता हो सकता है । क्योंकि दोनों ही विभाग जनता के पैसे पर कानूनी लड़ाई लड़ते हैं, जिससे एक ओर तो जनता के पैसे की बर्बादी होती है, दूसरी ओर न्यायालय के ऊपर मुकदमों का बोझ बढ़ता है और न्यायालय का कीमती वक्त बर्बाद होता है।
ध्यान देने की बात यह है कि न्यायपालिका का जो वक्त बर्बाद होता है, उसकी कीमत भी जनता के पैसे से ही चुकाई जाती है क्योंकि अंतत: न्यायपालिका के खर्च भी जनता के द्वारा दिए गए टैक्स से ही चलते हैं ।
अतः एक ही सरकार के विभिन्न अंगों के बीच के विवादों को निपटाने के लिए यदि एक सक्षम प्रशासनिक तंत्र का विकास हो सके, तो यह न केवल न्यायपालिका पर मुकदमों का बोझ कम करेगा, बल्कि जनता के पैसे की तमाम बर्बादी भी रोकेगा।
– संपादक