1 नवंबर 1984 को हरदेव सिंह, कुलदीप सिंह और संगत सिंह महिपालपुर में अपनी किराने की दुकानों पर थे। उसी समय 800 से 1000 लोगों की हिंसक भीड़ उनकी दुकानों की तरफ आई। भीड़ में शामिल लोगों के हाथों में लोहे के सरिए, लाठियां, हॉकी स्टिक, पत्थर, केरोसीन तेल था।. इस पर उन्होंने(हरदेव,कुलदीप और संगत) ने दुकानें बंद कर दी और वे सुरजीत सिंह नाम के शख्स के किराए के घर की तरफ भागे। कुछ समय बाद अवतार सिंह ने भी वहीं शरण ली। उन्होंने अंदर से कमरा बंद कर लिया। दुकानों को जलाने के बाद भीड़ ने सुरजीत के कमरे को निशाना बनाया। उन्होंने सभी को बुरी तरह से मारा। उन्होंने हरदेव और संगत को चाकू से गोद दिया और सभी लोगों को बालकनी से नीचे फेंक दिया। आरोपियों ने कमरे को केरोसीन छिड़ककर आग लगा दी। घायलों को बाद में सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां अवतार सिंह और हरदेव सिंह की मौत हो गई।
मौहम्मद इल्यास-’’दनकौरी’’/पाटियाला हाउस कोर्ट नई दिल्ली
1984 में हुए सिख विरोधी दंगे से जुड़े एक मामले में पहली मौत की सजा सुनाई गई है जब कि एक दोषी को उम्रकैद भी दी गई है। इसके साथ ही कोर्ट ने दोनों दोषियों पर 35-35 लाख का जुर्माना भी लगाया है। पटियाला हाउस कोर्ट ने मंगलवार दिनांक 20 नवंबर 2018 को 1984 सिख विरोधी दंगे के मामले में यह फैसला सुनाया। इनमें यशपाल सिंह को सजा-ए-मौत और नरेश सेहरावत को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। यह फैसला एडिशनल सेशंस जज अजय पांडे ने दिया है।दंगों के दौरान दो सिखों, अवतार सिंह और हरदेव सिंह, के घर जलाने और हत्या के मामले में 14 नवंबर को पटियाला हाउस कोर्ट ने दोनों को दोषी करार दिया था। सुरक्षा कारणों की वजह से फैसला तिहाड़ जेल में सुनाया गया। इन दोनों को हरदेव सिंह और अवतार सिंह की हत्या का गुनाहगार माना गया। हरदेव सिंह के भाई संतोख सिंह ने यह मामला दर्ज कराया था। फैसला सुनाते हुए जज पांडे ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने सफलतापूर्वक हत्या के आरोप को साबित किया है। उन्होंने कहा, ’गैरकानूनी रूप से इकट्ठे होने का मकसद सिख समुदाय के लोगों को मारना था और यह उस दौरान लगाए गए नारों से साफ पता चलता है। वहीं फैसले के बाद अकाली दल नेता हरसिमरत कौर बादल ने ट्वीट किया, कि “उन्होंने हत्या की, घर जलाए, रेप किया. आज उन्हें फांसी हुई। दो दोषियों के खिलाफ आज के फैसले ने सिखों के भरोसे को बढ़ा दिया है। हम टाइटलर, सज्जन और अन्य आरोपियों को कड़ी सजा मिलने की दुआ करते हैं।
ऐसे हुई अवतार सिंह और हरदेव सिंह की मौत
1 नवंबर 1984 को हरदेव सिंह, कुलदीप सिंह और संगत सिंह महिपालपुर में अपनी किराने की दुकानों पर थे। उसी समय 800 से 1000 लोगों की हिंसक भीड़ उनकी दुकानों की तरफ आई। भीड़ में शामिल लोगों के हाथों में लोहे के सरिए, लाठियां, हॉकी स्टिक, पत्थर, केरोसीन तेल था।. इस पर उन्होंने(हरदेव,कुलदीप और संगत) ने दुकानें बंद कर दी और वे सुरजीत सिंह नाम के शख्स के किराए के घर की तरफ भागे। कुछ समय बाद अवतार सिंह ने भी वहीं शरण ली। उन्होंने अंदर से कमरा बंद कर लिया। दुकानों को जलाने के बाद भीड़ ने सुरजीत के कमरे को निशाना बनाया। उन्होंने सभी को बुरी तरह से मारा। उन्होंने हरदेव और संगत को चाकू से गोद दिया और सभी लोगों को बालकनी से नीचे फेंक दिया। आरोपियों ने कमरे को केरोसीन छिड़ककर आग लगा दी। घायलों को बाद में सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां अवतार सिंह और हरदेव सिंह की मौत हो गई। वर्ष 2014 में मोदी सरकार आने के बाद गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने 1984 दंगा मामले में एसआईटी का गठन किया। एसआईटी में कुल तीन सदस्य हैं. चेयरमैन अनुराग कुमार, रिटायर्ड जिला जज राकेश कपूर और दिल्ली पुलिस के डीसीपी कुमार ज्ञानेश। एसआईटी की मियाद जनवरी 2019 तक है. एसआईटी ने कई मुकदमों की दोबारा जांच की। ये पहला मामला है जिसकी एसआईटी ने जांच की और कोर्ट ने आरोपियों को दोषी करार दिया है। दोनों दोषियों पर एसआईटी ने आरोप लगाया था कि उन्होंने दिल्ली के महिपालपुर में एक नवंबर 1984 को दो लोगों की हत्या की थी और तीन लोगों को जख्मी हालत में तब छोड़ा था। जब उन्हें लगा था कि उनकी मौत हो गई है। कई लोगों के घरों को आग के हवाले कर दिया था। एसआईटी ने तीन गवाह कोर्ट के सामने रखे थे. जिसके बाद कोर्ट ने दोनों को दोषी करार दिया।