सहारनपुर के बारे में लिखने के लिए कलम उठाई तो खुद को बड़ा कमजोर महसुस किया कि आखिर क्या लिखूं और कहा से शुरू करूँ | जो लोग इन दंगो में मारे गए है उनके दर्द को कैसे बयाँ करूँ| अभी मुज़फ्फरनगर के जख्म भर भी नहीं पाये थे की सहारनपुर ने नए जख्म दे दिए |
कभी मुज़फ्फरनगर काण्ड, कभी बंदायूँ रेप काण्ड और अब सहारनपुर काण्ड आखिर उत्तर प्रदेश को हो क्या गया है| क्या सिर्फ बलात्कार और दंगे ही उत्तर प्रदेश के हिस्से में आएगे या फिर यह प्रदेश भी भारत के बाकि प्रदेशो की तरह खेल कूद या अन्य क्षेत्रो में कभी नाम कमा पायेगा | हमारे लिए सबसे शर्म की बात तो ये है की अब दूसरे देश भी उत्तर प्रदेश के बारे में बात करने लगे है |
अमेरिका ने एक रिपोर्ट में कहा है की उत्तर प्रदेश के हालात इराक़, सीरिया और बांग्ला देश जैसे हो गये हैं| रिपोर्ट मे ये भी कहा गया है की उत्तर प्रदेश की सरकार राज्य में धार्मिक आधार पर जन्मे इस भेदभाव को रोकने में पूरी तरह से नाकामयाब रही है| आखिर सरकार कोई ठोस कदम क्यों नही उठा रही क्या सरकार के हाथ से कानून व्यवस्था पूरी तरह से बेकाबू हो चुकी है या फिर जान बुझ कर सरकार कोई कदम नहीं उठाना चाहती| लोक सभा चुनाव के नतीजे आने के बाद भी उत्तर प्रदेश सरकार कोई सबक नहीं ले रही है |
उत्तर प्रदेश में भाजपा की इतनी बड़ी जीत भाजपा के किसी नेता का करिश्मा नहीं थी बल्कि वो प्रदेश में मोजूदा सरकार की लचर कानून व्यवस्था का नतीजा थी, लेकिन इतनी करारी हार के बावजूद सपा सरकार कोई ठोस कदम उठाने को तेयार नही है| क्या ये सरकार की नहीं की को प्रदेश मे में ऐसा माहोल बना रही है जिससे कुछ हिंसा फेला रहे है
आख़िर क्या फर्क पड़ता है की एक जमीन पर मस्जिद बने या गुरूद्वारा दोनो जगह काम तो इबादत का ही होना है फिर ये दंगा फसाद क्यों? क्यों हमारा समाज चन्द दहशत गर्दो के हाथ की कठपुतली बन जाता है और चुपचाप तमाशा देखती रहती है| ये सवाल में नहीं बल्कि आज भारत का हर एक नागरिक पूछ रहा है की आखिर कब रुकेगा धर्म के नाम पर होने वाला ये तमाशा और कब हम अपने ही देश में खुद को सुरक्षित महसुस कर सकेंगे |
अमित कुमार राणा आड्वोकेट