हत्या के वक्त नाबालिग पाए जाने पर उम्रकैद की सजा माफ़
कानून रिव्यू/नई दिल्ली
कोर्ट में दूध का दूध और पानी का पानी हो ही जाता है। ऐसा हुआ भी है और यह बात साबित हुई है कि कानून के घर देर अंधेर नही है। कोर्ट कचहरी में कई बार न्याय मिलने में देरी जरूर हो जाती है मगर पफैसला आता जरूर है।् कुछ ऐसा ही मामला सुप्रीम कोर्ट में देखने को मिला है। पूरे 40 साल के बाद कोर्ट ने एक शख्स के हक में फैसला सुनाते हुए कहा है कि वो मर्डर करते समय नाबालिग था। कोर्ट ने उसकी उम्रकैद की सजा को माफ भी कर दिया है। ये घटना 1980 की है। बिहार के गया में बनारस सिंह अपने चचेरे भाई के साथ एक होटल पहुंचे। इसी होटल में उसने भाई की हत्या कर दी। कुछ देर के बाद होटल स्टाफ को पता चला कि बनारस सिंह वहां से गायब हो गया। लेकिन बाद में पुलिस से उसे गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद गया की एक कोर्ट ने उसे हत्या के आरोप में आजावीन कारावास की सजा सुना दी, वो 10 वर्ष से ज्यादा समय तक जेल में रहा। इसके बाद बनारस सिंह ने पटना हाईकोर्ट में सजा के खिलाफ अपील दायर की। उनकी दलील थी कि उसने जिस वक्त हत्या की तब वो नाबालिग था। बनारस सिंह ने कोर्ट में कहा कि उस वक्त उनकी उम्र 17 वर्ष 6 महीने थी। उस लिहाज से उसे नाबालिग के हिसाब से सजा दी जाए, लेकिन हाई कोर्ट ने 1998 में उनकी इस अपील को खारिज कर दिया। वर्ष 2009 में सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में पटना हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी। उनके वकील ने बिहार चाइल्ड्स एक्ट और जुविनाइल जस्टिस एक्ट का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपनी बात रखी। 10 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट से जवाब मांगा। रिपोर्ट में 10वीं के सर्टिफिकेट और बाकी रिकॉर्ड्स के हवाले ये साबित हो गया कि बनारस सिंह हत्या के समय 17 साल 6 महीने के थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बनारस सिंह पहले ही करीब 10 साल की सजा काट चुके हैं, ऐसे में तुरंत उसे जेल से रिहा किया जाना चाहिए।