मित्रों,
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने में लिव-इन-रिलेशनशिप को अपराध न मानते हुए इसको पुरुष और महिला के बीच का व्यक्तिगत फेसला बताया है साथ ही ये भी कहा है की यदि इस लिव-इन-रिलेशनशिप के दौरान बच्चे का जन्म हो जाता है तो उस बच्चे को जायज माना जाएगा |
परंतु सवाल ये है कि यदि लिव-इन-रिलेशनशिप के बाद पुरुष और महिला शादी ना करना चाहें और एक दूसरे से अलग होना चाहें तो उस बच्चे की परवरिश की ज़िम्मेदारी कौन लेगा | मगर इससे भी अधिक महत्वपूर्ण सवाल जो जेहन में आता है वो ये है कि क्या इस निर्णय से महिलाओ के साथ उनकी सम्मती से होने वाले बलात्कारों की संख्या और अधिक नहीं बढ़ जायेगी|
महिलाओं में हमेशा से ही पुरष की तुलना में समर्पण की भावना अधिक रही है और लिव-इन-रिलेशनशिप की आड़ में क्या पुरुष महिलाओं की इसी कमजोरी का फायडा नहीं उठाएगा | अधिकतर पुरुष बंधन और जिम्मेदारियों से हमेशा बचना चाहते है तो क्या ये संभव नहीं की लिव-इन-रिलेशनशिप से उठा जाने के बाद और अपराध बोध न होने के कारण पुरुष कभी भी महिला को अकेला छोड़कर जा सकता है | और जब चाहे उस महिला की जिम्मेदारी से मुक्त हो सकता है |
परंतु उस महिला का क्या होगा जिस महिला की भावनाओं को ढेस लगेगी क्या इस सब से महिलाओं के दिल में पुरुषों के प्रति विश्वास कम न होगा | क्या इस तरह महिलाएँ भोग की वस्तु बनकर नहीं रह जाएँगी | क्या इस सबसे महिलाओं के प्रति पुरुषों के दिल मे सम्मान कम होना शुरू नहीं हो जाएगा | कहते हैं कि जन्हा नारी का सम्मान होता है वहाँ देवताओं का वास होता है इसका अर्थ ये है कि जिस समाज मे पुरुष नारी का सम्मान करते है वहाँ पुरुष देवता तुल्य होते है अर्थात चरित्रवान पुरुष को ही देवता कहा जाता है लेकिन क्या इस सब से पुरुष के चरित्र का पतन होना शुरू नहीं हो जाएगा |
आज पूरे विश्व में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जन्हा विवाह के पश्चात पुरुष और महिलाओं के बीच के संबंध सबसे अधिक मजबूत माने जाते हैं क्योंकि यहाँ शादी को कांट्रेक्ट नहीं संस्कार माना जाता है प्रंतु क्या में अपराधबोध कम होने से विवाह के रिश्ते कमजोर होना शुरू नहीं हो जायेगे, स्वयं विचार कीजियेगा |
अमित कुमार राणा आड्वोकेट