बच्चों से रेप के मामलों में सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
कानून रिव्यू/नई दिल्ली
देशभर में बच्चों से रेप के मामलों में हुई बढ़ोतरी पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को यह निर्देश दिया है कि वो 60 दिनों के भीतर देश के उन जिलों में पॉक्सो एक्ट के तहत विशेष अदालतों का गठन करें, जिनमें ऐसे 100 से अधिक मामले लंबित हैं। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह साफ किया है कि इन अदालतों में विशेष जज, विशेष सरकारी वकील, सहयोग कर्मचारी और बुनियादी संसाधनों के लिए वित्तीय इंतजाम केंद्र सरकार करेगी। साथ ही पीठ ने देशभर के सिनेमाघरों में बाल उत्पीड़न से बचाव संबंधित छोटी क्लिप चलाने और और विभिन्न टीवी चैनलों पर ही चाइल्ड हेल्पलाइन नंबर के साथ नियमित प्रसारण के निर्देश भी दिए। पीठ ने एसजी तुषार मेहता को 4 हफ्ते में इसकी रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है और मामले की अगली सुनवाई 26 सितंबर को तय की है। एमिकस क्यूरी और वरिष्ठ वकील वी0 गिरी ने पीठ को यह बताया कि दिल्ली के अलावा कहीं भी विशेष अदालतों का प्रबंध नहीं किया गया है। दिल्ली में एक जज के पास करीब 400 केस हैं, जबकि नालसा का कहना था कि देश के हर जिले में ऐसे 250 मामले लंबित हैं। एमिकस ने कोर्ट को यह बताया कि विशेष अदालतों के गठन और जागरुकता से ऐसे मामलों में
काबू पाया जा सकता है। वहीं सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्रार ने इस संबंध में इस साल से पहले के आंकड़े पीठ के सामने रखे। मामले की पिछली सुनवाई में पीठ ने यह कहा था कि ये चिंता की बात है कि कानून के प्रावधानों और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद ऐसे मामलों से निपटने के लिए इंतजाम नहीं किए गए हैं। पीठ ने एमिकस क्यूरी और वरिष्ठ वकील वी0 गिरी से यह पूछा था कि बाल यौन उत्पीड़न के पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए क्या किया जाए? वहीं गिरी ने पीठ को बताया था कि कुछ राज्यों में 6 महीने के भीतर ट्रायल पूरा करने के प्रावधान का शून्य कार्यान्वयन है। एक या दो असाधारण मामलों के अलावा, जो कुछ हफ्तों के भीतर पूरे हुए थे, बच्चों से बलात्कार का कोई भी मामला 1 साल की सुनवाई अवधि के भीतर पूरा नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि दिल्ली को छोड़कर किसी भी अन्य राज्यों में बच्चों के लिए अलग प्रतीक्षा कक्ष, गवाह परीक्षा कक्ष के प्रावधान नहीं बनाए गए हैं। बाल पीड़ितों और माता.पिता को भीड़ भरी अदालत में लंबे समय तक इंतजार करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इसके लिए संसाधन जुटाने होंगे और इसमें सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप जरूरी है। उन्होंने बताया कि दिल्ली में 6 महीने में 170 मामले ट्रायल के लिए भेजे गए लेकिन 2 मामलों में ही ट्रायल पूरा हुआ है। गिरी ने यह भी कहा कि इसके लिए बुनियादी ढांचे में बदलाव एक जरूरी है। पॉक्सो एक्ट की अदालतों के गठन और विशेष प्रशिक्षित अभियोजकों की आवश्यकता है। पीठ ने रजिस्ट्री को कहा था कि वो जनवरी से पहले बच्चों से बलात्कार के मामलों की कुल संख्या, कितने समय से लंबित हैं, कितने ट्रायल पूरे हुए ये सब डेटा दस दिनों में दाखिल करे। सीजेआई रंजन गोगोई ने मीडिया में देश भर में बच्चों के साथ रेप की लगातार बढ़ रही घटनाओं पर स्वतः संज्ञान लेकर सुनवाई शुरु की है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री से पूरे देश में 1 जनवरी से 30 जून तक ऐसे मामलों में दर्ज एफआईआर और कानूनी कार्रवाई का डेटा तैयार करने के निर्देश दिए थे और रजिस्ट्री ने देश के सभी उच्च न्यायालयों से आंकड़े एकत्रित किए। इनके अनुसार 1 जनवरी से 30 जून तक देश भर में बच्चों से रेप के 24 हज़ार से अधिक मुकदमे दर्ज किए गए हैं। इनमें से 11981 मामलों में जांच चल रही है जबकि 12231 केस में पुलिस चार्जशीट दाखिल कर चुकी है लेकिन 6649 मामलों में ही ट्रायल शुरू हो पाया है। अभी ट्रायल कोर्ट 911 मामलों में ही फैसला दे पाया है यानी कुल मामलों का 4 फीसदी। इस सूची में उत्तरप्रदेश 3457 मुकदमों के साथ पहले स्थान पर है जबकि 9 मुकदमों के साथ नगालैंड सबसे निचले पायदान पर है। उत्तरप्रदेश में 50 प्रतिशत से ज्यादा 1779 मामलों की जांच ही पूरी नहीं हो पाई है। इन मामलों में आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट भी दाखिल नहीं हो पाई है। सूची में मध्यप्रदेश दूसरे नम्बर पर है। 2389 मामले तो हुए लेकिन पुलिस ने 1841 मामलों में जांच पूरी कर चार्जशीट भी दाखिल की। राज्य की निचली अदालतों ने 247 मामलों में तो ट्रायल भी पूरा कर लिया है।