लालू ने कहा कि खुशी से मरना पसंद करूंगा
संसद की सदस्यता गंवाने वाले लालू प्रसाद यादव भारतीय इतिहास में लोक सभा के पहले सांसद
- मौहम्मद इल्यास-दनकौरी/कानून रिव्यू
—————————————–बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद को 950 करोड के चारा घोटाले में दोषी करार दे दिया गया है और साथ ही कोर्ट ने साढे तीन साल की सजा भी सुना दी। इस मामले में सजा सुनाने वाले जज ने जिस प्रकार टिप्पणी की कि उनकी सिफारिश में कई लोगों के फोन आ रहे हैं किंतु वह झुकेंगे बिल्कुल नही और अपना कर्तव्य जरूर निभाएंगे। हुआ भी कुछ ऐसा ही और जज ने लालू को साढे तीन साल की सजा सुना दी। कोर्ट ने बखूबी अपना काम किया और साढे तीन साल की कैद व जुमार्ने की सजा सुनाई। किंतु उस सरकारी पैसे का क्या हुआ जो खजाने से निकाल गया और वापसी नही हुई। क्या सरकार को इस तरह के घोटालों के मामले में अलग से कानून नही बनाने चाहिए कि जिससे दोषी को सजा होने के साथ उसकी सपत्ति से बेजा निकाले गए सरकारी धन की वसूली की जाए अथवा सपंत्ति ही जब्त की कर ली जाए। सजा के साथ संपत्ति जब्त की जाए या फिर धन को वापस सरकारी खजाने में वापस लाया जाए। खैर यह बहस का एक नया विषय है फिलहाल आखिर क्या है चारा घोटाला जिसमें बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव समेत कई नेता फंसे और जिनमें से कई लोग बरी हुए और कई लोगों को सजा हुई प्रकाश डालना जरूरी है आइए जानते हैं विस्तार से चारा घोटाला के अंशः
चारा घोटाला स्वतन्त्र भारत के बिहार प्रान्त का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार घोटाला था जिसमें पशुओं को खिलाए जाने वाले चारे के नाम पर 950 करोड़ रुपये सरकारी खजाने से फर्जीवाड़ा करके निकाल लिए गए। सरकारी खजाने की इस चोरी में अन्य कई लोगों के अलावा बिहार के तत्कालीन मुख्यमन्त्री लालू प्रसाद यादव व पूर्व मुख्यमन्त्री जगन्नाथ मिश्र पर भी आरोप लगा। इस घोटाले के कारण लालू यादव को मुख्यमन्त्री के पद से त्याग पत्र देना पड़ा।, लेकिन राजनीति के माहिर खिलाड़ी लालू ने अपनी जगह अपनी बीबी राबड़ी देवी को कुर्सी सौंप कर स्वयं ही सबसे बड़ा सबूत पेश कर दिया कि भैंस उनके आगे क्या चीज है वह चारा खाकर सिर्फ़ दूध ही तो देती परन्तु वह दूध की जगह बिहार की जनता को राबड़ी देकर जा रहे हैं।
लोकसभा में प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी द्वारा इस मुद्दे को जोर.शोर से उठाया गया और सीबीआई जांच की मांग की गई। सत्तारुढ़ पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस व उसकी सहयोगी जनता दल जैसी दो.दो दिग्गज पार्टियों के नेताओं और नौकरशाही की मिलीभगत से की गई सरकारी खजाने की इस चोरी की गूंज न सिर्फ़ भारत में बल्कि सात समुन्दर पार अमेरिका और ब्रिटेन में भी सुनाई दी जिससे भारत की राजनीति बदनाम हुई। हालांकि यह घोटाला 1996 में हुआ था लेकिन जैसे.जैसे जांच हुई इसकी पर्तें खुलती गई और लालू यादव व जगन्नाथ मिश्र जैसे कई सफेदपोश नेता इसमें शामिल नजर आए। मामला लगभग दो दशक तक चला। मीडिया ने भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिसके चलते सीबीआई और न्यायपालिका अपनी.अपनी कार्रवाई में कोई कोताही नहीं बरती। इससे यह भी साफ हो गया कि इस देश को नेता नहीं बल्कि माफिया चला रहे हैं जिन्होंने इसकी अर्थव्यवस्था को चौपट कर दिया है। न्यायालय ने चारा घोटाले में लालू यादव को दोषी घोषित किया और उनकी लोकसभा की सदस्यता छीन ली गई तथा ११ वर्ष तक कोई चुनाव लड़ने पर प्रतिबन्ध लगा दिय गया। लालू प्रसाद यादव और जदयू नेता जगदीश शर्मा को घोटाला मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद लोक सभा से अयोग्य ठहराया गया।
उच्चतम न्यायालय ने चारा घोटाला में दोषी सांसदों को संसद की सदस्यता से अयोग्य ठहराये जाने से बचाने वाले प्रावधान को भी निरस्त कर दिया है। लोक सभा के महासचिव एस० बालशेखर ने यादव और शर्मा को सदन की सदस्यता के अयोग्य ठहराये जाने की अधिसूचना जारी कर दी। लोक सभा द्वारा जारी इस अधिसूचना के बाद संसद की सदस्यता गंवाने वाले लालू प्रसाद यादव भारतीय इतिहास में लोक सभा के पहले सांसद रहे जब कि जनता दल यूनाइटेड के एक अन्य नेता जगदीश शर्मा दूसरे और जिन्हें 10 साल के लिए अयोग्य ठहराया गया।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश पर भी पडी लपटें
चारा घोटाले की लपटें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर भी पडी। इस घोटाले के आरोपी एस०बी० सिन्हा के बयान के अनुसार चारा घोटाले का पैसा बिहार के मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार को भी मिला था। ए०के० झा ने सीबीआई के विशेष न्यायाधीश आर०आर० त्रिपाठी की अदालत में बताया कि घोटाले के आरोपी एस०बी० सिन्हा से बयान लिया गया था। इसी बयान में इसकी पुष्टि हुई है। एस०बी० सिन्हा ने बताया था कि 1995 के लोकसभा चुनाव में चारा घोटाले के आरोपी विजय कुमार मल्लिक द्वारा एक करोड़ रुपये नीतीश कुमार को भिजवाया गया। यह पैसा उन्हें दिल्ली के एक होटल में दिया गया। नीतीश ने पैसे लेकर धन्यवाद भी कहा। कुछ दिनों बाद फिर घोटाले के आरोपी एस०बी० सिन्हा ने नौकर महेन्द्र प्रसाद के हाथ 10 लाख रुपये पटना में विधायक सुधा श्रीवास्तव के घर पर नीतीश कुमार के लिए भेजे। घोटाले के आरोपी आर०के० दास ने भी कोर्ट में दिये बयान में बताया था कि उसने पांच लाख रुपये नीतीश कुमार को दिए हैं। नीतीश कुमार 1995 में समता पार्टी के नेता थे। वह एस०बी० सिन्हा को कहते थे कि पैसा नहीं देने पर मामला उजागर कर दिया जाएगा। तत्कालीन विधायक शिवानन्द तिवारी, राधाकान्त झा, रामदास एवं गुलशन अजमानी को भी पैसा देने की बात सामने आई।
घोटाले की परतें जैसे जैसे खुलती गई यह मामला एक-दो करोड़ रुपए से शुरू होकर 950 करोड़ रुपए तक जा पहुंचा। परन्तु कोई पक्के तौर पर नहीं कह सकता कि घपला कितनी रक़म का है क्योंकि यह वर्षों से होता रहा है और बिहार में हिसाब रखने में भी भारी गड़बड़ियां हुईं।
मामले के जाल में फंसे लालू यादव को इस सिलसिले में जेल जाना पड़ा। उनके खिलाफ़ सीबीआई और आयकर की जांच हुई, छापे पड़े। आय से अधिक सम्पत्ति के एक मामले में सीबीआई ने राबड़ी देवी को भी अभियुक्त बनाया।
सीबीआई ने जांच की कमान संभाली तो कई सफेदपोशों तक पहुंची आंच
———————————————————————– बिहार पुलिस ने 1994 में राज्य के गुमला, रांची, पटना, डोरंडा और लोहरदगा जैसे कई कोषागारों से फर्ज़ी बिलों के ज़रिए करोड़ों रुपये की कथित अवैध निकासी के मामले दर्ज किए। रातों.रात सरकारी कोषागार और पशुपालन विभाग के कई सौ कर्मचारी गिरफ़्तार कर लिए गए। कई ठेकेदारों और सप्लायरों को हिरासत में लिया गया और पूरे राज्य में दर्जन भर आपराधिक मुक़दमे दर्ज किए गए। लेकिन बात यहीं ख़त्म नहीं हुई। राज्य के विपक्षी दलों ने मांग उठाई कि घोटाले के आकार और राजनीतिक मिली.भगत को देखते हुए इसकी जांच सीबीआई से कराई जाए। सीबीआई ने मामले की जांच की कमान संयुक्त निदेशक यू० एन० विश्वास को सौंपी और यहीं से जांच का रुख़ बदल गया। सीबीआई ने अपनी शुरुआती जांच के बाद कहा कि मामला उतना सीधा.सादा नहीं है जितना बिहार सरकार बता रही है। सीबीआई का कहना था कि चारा घोटाले में शामिल सभी बड़े अभियुक्तों के संबंध राष्ट्रीय जनता दल व दूसरी पार्टियों के शीर्ष नेताओं से रहे हैं और उसके पास इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि काली कमाई का हिस्सा नेताओं की झोली में भी गया है। राज्य के ख़ज़ाने से पैसा कुछ इसी तरह निकाला गया। पशुपालन विभाग के अधिकारियों ने चारे और पशुओं की दवा आदि की सप्लाई के मद में करोड़ों रुपये के फ़र्जी बिल कोषागारों में वर्षों तक नियमित रूप से भुनाए। जांच अधिकारियों ने कहा कि बिहार के मुख्य लेखा परीक्षक ने इसकी जानकारी राज्य सरकार को समय.समय पर भेजी थी लेकिन बिहार सरकार ने इसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया। राज्य सरकार की वित्तीय अनियमितताओं का हाल ये है कि कई.कई वर्षों तक विधानसभा से बजट पारित नहीं हुआ और राज्य का सारा काम लेखा अनुदान के सहारे चलता रहा।
सीबीआई का यह भी कहना था कि उसके पास इस बात के दस्तावेज़ी सबूत हैं कि तत्कालीन मुख्यमन्त्री को न सिर्फ़ इस मामले की पूरी जानकारी थी बल्कि उन्होंने कई मौक़ों पर राज्य के वित्त मन्त्रालय के प्रभारी के रूप में इन निकासियों की अनुमति भी दी थी।
जांच के दौरान सीबीआई ने ये दावा भी किया कि लालू प्रसाद यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी अपनी घोषित आय से अधिक सम्पत्ति रखने के दोषी हैं।
सीबीआई का कहना था कि ये सामान्य आर्थिक भ्रष्टाचार का नहीं बल्कि व्यापक षड्यन्त्र का मामला है जिसमें राज्य के कर्मचारी, नेता और व्यापारी वर्ग समान रूप से भागीदार है। मामला सिर्फ़ राष्ट्रीय जनता दल तक सीमित नहीं रहा। इस सिलसिले में बिहार के एक और पूर्व मुख्यमन्त्री जगन्नाथ मिश्र को गिरफ़्तार किया गया। राज्य के कई और मन्त्री भी गिरफ़्तार हुए। सीबीआई के कमान संभालते ही बड़े पैमाने पर गिरफ़्तारियां हुईं और छापे मारे गए। लालू प्रसाद यादव के खिलाफ़ सीबीआई ने आरोप पत्र दाखिलि कर दिया जिसके बाद उन्हें अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा। बाद में सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत मिलने तक वे कई महीनों तक जेल में रहे। मामले के तेज़ी से निबटारे में बहुत सारी बाधाएं आईं। पहले तो इसी पर लंबी क़ानूनी बहस चलती रही कि बिहार से अलग होकर बने झारखण्ड राज्य के मामलों की सुनवाई पटना हाईकोर्ट में होगी या रांची हाईकोर्ट में। सीबीआई ने ज़्यादातर मामलों में आरोप पत्र दाख़लि करके मुकदमा शुरू किया। आखिर लालू प्रसाद यादव के लिए वर्ष 2018 एक बुरा स्वपन बना कर आया और नए वर्ष के प्रथम सप्ताह में ही लालू प्रसाद यादव को रांची की सीबीआई अदालत ने साढ़े तीन साल जेल और पांच लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई है। वह फिलहाल रांची के बिरसा मुंडा जेल में बंद हैं। जहां वह माली का काम करेंगे। इसके एवज में जेल प्रशासन उन्हें रोजना 93 रुपये मेहनताना देगा।
बजाए मौत पसंद लालू
————-लालू ने अदालत द्वारा सजा सुनाए जाने के बाद कहा कि बीजेपी की राह में चलने के बजाए मरना पसंद करूंगा। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद के ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया गया बीजेपी की राह में चलने के बजाए मैं सामाजिक न्याय, सद्भाव और समानता के लिए खुशी से मरना पसंद करूंगा।